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जैन समाज को कुछ उपजातियां
घनी व्यक्ति पाए जाते हैं। इस जाति का अधिकाश के मणि साह सेठ के द्वितीय पुत्र, जो मल्हादेबी की कुक्षी से निवास आगरा जिला, मैनपुरी, एटा, दिल्ली, ग्वालियर जन्मे थे, बड़े बुद्धिमान और राजनीति में दक्ष थे। इनका और कलकत्ता आदि स्थानों में पाया जाता है। नाम कण्ह या कृष्णादित्य था, माहवमल्लन के प्रधान मंत्री
पल्लिबाल-पालि नगर से पल्लिवालों का निकास थे। जो बड़े धर्मात्मा थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम हुप्रा है। यह उपजाति भी अपने समय में प्रसिद्ध रही 'सुलक्षणा' था जो उदार, धर्मात्मा, पतिभक्ता और रूपहै। इनके द्वारा भी मन्दिर और मूर्तियों का निर्माण वती थी। इनके दो पुत्र थे हरिदेव और द्विजराज । इन्हीं हुमा है। सेठ छदामोलाल जो फिरोजाबाद पल्लिवाल कण्ह की प्रार्थना से कविलक्ष्मण ने वि० स० १३१३ में कुल के एक संभ्रान्त परिवार के व्यक्ति है। उन्होंने जैन अणुवय-रयण-पइव नाम का ग्रन्थ बनाया था। नगर मे एक सुन्दर विशाल मन्दिर का निर्माण कराया कवि धनपाल ने अपने 'बाहुवलि चरित' की प्रशस्ति है। पल्लिवालों द्वारा प्रतिष्ठित अनेक मतिया भी उप- में चन्द्रवाड में चौहानवशी राजा अभयचन्द्र के और उनके लब्ध होती है। १० मक्खनलाल जी प्रचारक इसी जाति पुत्र जयचन्द के राज्यकाल में लम्बकचुक वश के साहु के भूपण है । इस जाति की पावादी अल्प है। इस जाति सोमदेव मन्त्रि पद पर प्रतिप्ठित थे। और उनके द्वितीय के लोग दिगम्बर श्वेताम्बर दोनो ही सम्प्रदायो मे पाये
पुत्र रामचन्द्र के समय सोमदेव के पुत्र साहू वासाधर जाते है।
गज्य के मत्री थे, जो सम्यकत्वी जिनचरणो के भक्त, लमेच-यह भी एक उपजाति है जो मूतिलेखो और
जैनधर्म के पालन में तत्पर, दयालू, मिथ्यात्व रहित, बहुग्रन्थ प्रशस्तियो में 'लम्ब कचुकान्वय' के नाम से प्रसिद्ध
लोक मित्र और शुद्ध चित्त के धारक थे। इनके पाठ है। मूर्ति लेग्बो मे लम्बकचुकान्वय के साथ यदुवंशी
पुत्र । जमपाल, रतपाल, चन्द्रपाल, विहराज, पुण्यपाल,
वाहड़ और रूपदेव । ये पाठो ही पुत्र अपने पिता के लिखा हुमा मिलना है। जिससे यह एक क्षत्रिय जाति ज्ञात होती है। यद्यपि वर्तमान मे ये क्षत्रिय नही है वैश्य
समान धर्मज्ञ और सुयोग्य थे। भ० प्रभाचन्द्र ने स० है। इस जाति का निकास किसी लम्ब काचन नामक
१४५४ मे वासाधर की प्रेरणा से बाहबलि चरित की
रचना की थी। इन्होने चन्द्रवाड में एक मन्दिर बनवाया नगर से हुअा जान पड़ता है। इसमें रपरिया, रावत, ककोग्रा और पचोले गोत्रो का भी उल्लेख मिलता है।
और उसकी प्रतिष्ठा की थी। इन सब उल्लेखों से स्पष्ट इस जाति मे अनेक पुरुष प्रतिष्ठित और परोपकारी हुए १ देखो अणुवय-ग्यण-पईव, प्रशस्ति, तथा चन्द्र वाड नाम है। जिन्होने जिन मन्दिरो और मूर्तियो का निर्माण का मेरा लेख जैनसि० भा० भा० २३ कि० १, पृ. ७५ कराया है, अनेक ग्रन्थ लिखवाए है। इनमे बुढेले और २ तेरह सय तेरह उत्तराल, परिगलियविक्कमाइच्च काल । लमेच ये दो भेद पाये जाते है, जो प्राचीन नहीं है। बाबू सवेय रहइ सत्वह समक्ख, कत्तिय-मासम्मि असेय-पक्ख ॥ कामता प्रसाद जी ने 'प्रतिमा लेख सग्रह' मे लिखा है ३ थी लम्बकेचुकुल पद्मविकासभानुः, कि-बुढेले लमेचू अथवा लम्ब कचुक जाति का एक गोत्र सोमात्मजो दुरितदास चय कृशानुः । था; किन्तु किसी सामाजिक अनवन के कारण स० १५६० धक साधन परो भुविभव्व बन्धु, और १६७० के मध्य किसी समय यह पृथक् जाति वन वासाघरो विजयते गुणरत्न सिन्धुः ॥ गया। बढेले जाति के रावत संधई आदि गोत्रो का
-बाहुबलि चरित सघि ४ उल्लेख मिलता है। इससे प्रकट है कि इस गोत्र के साथ जिणणाहचरणभत्तो जिणधम्मपरोदयालोए। अन्य लोग भी लमेचुत्रों से अलग होकर एक अन्य उप- सिरि सोमदेव तणयो गंदउ वासद्धरो णिच्वं ॥ जाति बनाकर बैठ गये। इन उपजातियों के इतिवृत्त के सम्मत्त जुत्तो जिण पायभत्तो दयालुरत्तो बहुलोयमित्तो । लिए अन्वेषण की आवश्यकता है। चन्द्रवाड के चौहान मिच्छत्तचत्तो सुविसुद्धचित्तो वासाधरो णंदउ पुण्ण चित्तो। वशी राजा पाहवमल्ल के राज्यकाल मे लंब कंचुक कुल
-बाहुबलिचरित संघि ३