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वसुनन्दि के नाम से प्राकृत का एक संग्रह-ग्रन्थः 'तत्वविचार'
प्रो० प्रेमसुमन जैन एम. ए., शास्त्री 'तत्व विचार' की सं० १९८८ मे लिखित प्रति का वर्णन तथा तेरहवें और अन्तिम दान प्रकरण में ५६ मैंने अवलोकन किया है, पन्नालाल सरस्वती भवन व्यावर गाथाओं द्वारा सभी प्रकार दानों का स्वरूप एवं फल निरू. से प्राप्त हुई थी। इतनी अाधुनिक प्रति होने पर भी पण किया गया है। अशुद्धियाँ इसमें काफी हैं। जगह-जगह पाठ भी छुटे है। अन्त की दो गाथाओं में से प्रथम ग्रन्थ और ग्रन्थकुछ गाथाएँ भी लुप्त हैं। ग्रन्थ का प्रारम्भ श्री पार्श्वनाथ कार का नाम निर्दिष्ट है तथा अन्तिम गाथा प्राशीष की वन्दना के साथ प्रारम्भ होता है
__ वचन के रूप में हैणमिय जिणपासपयं विम्बहरं पणय बंछियत्थपयं ।
जो पढाइ सुणइ प्रक्ख अण्णं पढ़ाइ ई उवएसं। बच्छं तत्तवियारं सखेवेण निसामेह ॥१॥
सो हण इणियय कम्म कमेण सिद्धालयं जाइ॥२६॥ तदुपरांत पचनमस्कार मन्त्र की महिमा एवं फल का
प्रस्तुत 'तत्वविचार' के सम्पादन प्रादि के विषय में निरूपण २७ गाथानों में किया गया है । मन्त्र को जिन भाई सा० डा० गोकुलचन्द्र जैन, वाराणसी मुझे बराबर शासन का सार बतलाया गया है
प्रेरित करते रहे। अतः मै इसी दृष्टि से इस ग्रन्थ को जिण सासणस्य सारो चउबसपुष्वाण जो समुद्वारो। देख रहा था। 'तत्वविचार' को बहुत समय तक मैं वसुजस्स मणे णवकारी संसारो तस्य किं कुणई ॥२८॥ नन्दि सैद्धांतिक की ही एक अन्य रचना मानता रहा ।
इसके बाद दूसरे धर्मप्रकरण मे १३ गाथाम्रो द्वारा ग्रन्थ में स्वय इस बात का निर्देश हैदस धर्मों का वर्णन, तीसरे एकोनत्रिशद् भावना प्रकरण एसो तसवियारो सारो सज्जण जणाण सिवसुहवो। में २६ गाथाओं द्वारा भावनामो का वर्णन, चोथे सम्य- 'वसुन दिसूरि रहनो भवाण पवोहणढें खु ॥२४॥ क्त्व प्रकरण में २१ गाथाओ द्वारा सम्यक्त्व का वर्णन,
- वसुनन्दिसूरि, प्राचार्य वसुनन्दि, वसुनन्दि सैद्धान्तिक पाँचवे पूजाफल प्रकरण मे २० गाथामो द्वारा पूजा एव ये सब एक ही व्यक्ति के विशेषणयुक्त नाम मुझे प्रतीत उसके फल का वर्णन, छठे विनयफल प्रकरण मे १६ हए । 'तत्व विचार' के लिपिकार ने अपनी प्रशस्ति मे भी गाथानों में पांच विषयों का स्वरूप एवं फल का वर्णन, इसी बात की पुष्टि की है-'इति वसुनन्दी सैडांती विरसातवे वैयावृत्य प्रकरण में १४ गाथाम्रो द्वारा वैयावृत्य का चित तत्वविचार समाप्तः।' १० माशाघर ने वसूनन्दि की वर्णन, पाठवें सप्तव्यसन प्रकरण' में १३ गाथायो द्वारा बहमुखी प्रतिभा, संस्कृत-प्राकृत की उभय भाषा विज्ञता सात व्यसनों का वर्णन, नौवे एकादश प्रतिमा प्रकरण मे
एवं अनेक सैद्धांतिक ग्रंथों के रचयिता होने के कारण उन्हे ४० गाथाओं द्वारा प्रतिमानों का विशद वर्णन, दसवें
सैद्धांतिक कहा है-'इति वसुनन्दि सैद्धांतिकमतेजीवदया प्रकरण में २३ गाथानों द्वारा अहिंसा प्रादि
इससे भी मुझे अपनी मान्यता के लिए बल मिला। साथ का वर्णन, ग्यारहवें श्रावकविधि प्रकरण मे ६ गाथाओं
ही 'तत्वविचार' और वसुनन्दि श्रावकाचार के विषय की द्वारा जिन प्रतिष्ठा प्रादि का वर्णन, बारहवे अणुव्रत प्रक
सभ्यता, भाषा की एकता और श्रावकाचार की लगभग रण में १० गाथाओं द्वारा संक्षेप में अणुव्रतो का स्वरूप
१०० गाथानों का 'तत्वविचार' में पाया जाना प्रादि ने १. प्रति में 'इति सप्त व्यसन प्रकरण ॥' लिखना मुझे यह मानने को मजबूर कर दिया कि प्रस्तुत 'तत्व
छूट गया है। अतः ग्रन्थ में १३ प्रकरण होने पर भी २. सागार धर्मामृत प्र.३, श्लोक १६ की टीका तथा १२ प्रकरण का ही निर्देश है।
४-५२ की टीका में।