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एक महान विभूति का वियोग
इस अंक के छपते-छपते बड़ा ही दुखद समाचार मिला है कि राष्ट्रपति डा. जाकिरहसेन का ३ मई को हृदयगति के रुक जाने से अकस्मात् देहान्त हो गया। इस समाचार से सारे देश का शोक-मग्न हो जाना स्वा डा० जाकिरहुसेन देश की महान विभूति थे, वह भारत के राष्ट्रपति पद पर प्रासीन थे । पर उनकी महत्ता इस बात मे थी कि वे मानवता के केवल हामी ही नहीं थे किन्तु उसमे बडे थे। देश के अभ्युत्थान मे जिन-जिन क्षेत्रों में उनकी सेवारों की आवश्यकता हुई वे सदा तत्पर रहे । बुनियादी शिक्षा के क्षेत्र मे उन्होने जो कार्य किया वह हमारे इतिहास मे सदा अमर रहेगा । उन्होने जामा मिलिया के रूप में जो देन दी है, वह महान है।
डा. जाकिरहुसेन ने देश के सामने धर्म-निरपेक्षता की एक ऐसी मिसाल पेश की, जिसने लोक-मानस पर बड़ा प्रभाव डाला । सभी धर्मों के अनुयायी उन्हें आदर की दृष्टि से देखते थे। ऐसी विभूति के निधन से जो स्थान रिक्त हुआ है उसकी पूर्ति सहज ही नही हो सकती।
हम दिवगत आत्मा के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करते हुए आशा करते है कि उन्होंने अपने वैयक्तिगुणों और सेवाकार्यो से जो प्रेरणाएँ दी है वे देशवासियो का मार्गदर्शन करती रहेगी। अनेकान्त पत्र के माध्यम से उनके शोक-सन्तप्त परिवार के लिए हमारी समवेदनाएँ।
दि. जैन समाज में उपेक्षा का परिणाम
दि० जैन समाज यद्यपि मन्दगति से अपना कार्य कर रहा है। उसकी जैसी प्रगति होनी चाहिए थी नही हो सकी। अनेक जैन मन्दिरों और मूर्तियो का निर्माण तथा पचकल्याणक प्रतिष्ठानो मे अपार धन खर्च किया जाता है। पर तीर्थकरो की वाणी के प्रसार मे या शास्त्रों के जीर्णोद्धार में एक पैसा भी कोई खर्च करने को तैयार नही है। दि. जैन मन्दिरो मे स्थित शास्त्रभण्डार अव्यवस्थित है, चहा, दीमक और कीटकादि के भक्ष्य हो रहे है। अभी १० परमानन्द शास्त्री का लश्कर जाना हुम्रा था। उनसे ज्ञात हुआ कि ग्वालियर किसी समय जैन समाज का केन्द्र स्थल था, वहाँ के मन्दिरों में दसवी शताब्दी से २०वी शताब्दी तक की प्रतिष्ठत अनेक मनियाँ मन्दिरो में विराजमान है। किले मे उर्वाही द्वार की दायें बाये दोनो पोर चट्टानो को खोद कर बनाई गयी प्रतिमाएँ अत्यन्त आकर्षक और कला पूर्ण हैं और अधिकाश खण्डित है। परन्तु वे जैनो द्वारा सदा उपेक्षित रही है। उनका पत्थर गल रहा है, शिला लेख नष्ट होते जा रहे है। अनेक मूर्तियाँ खण्डित है। उनकी ओर वहाँ की समाज की पूर्ण उपेक्षा है। मन्दिरो के शास्त्र भण्डारो की कोई व्यवस्था नहीं है। ग्वालियर का भट्टारकीय शास्त्र भडार ४० वर्ष से बन्द पड़ा है, उसकी न कोई सूची है, और न यही ज्ञात हो सका कि वहा कितने और क्या-क्या अमूल्य प्रथ हैं। उनकी सार सम्हाल यदि जल्दी न की गई तो फिर इस अमूल्य सम्पदा से सदा के लिये हाथ धोना पडेगा। शास्त्र भडारो की सम्पत्ति जैन समाज की व राष्ट्र की निधि है। उसका संरक्षण देव मन्दिर व प्रतिमानो के समान ही होना चाहिये। ग्वालियर में ७ हजार जैनियों की संख्या है, २३, २४ मन्दिर है। प्राशा है ग्वालियर और लश्कर की जैन समाज के धर्मात्मा सज्जन इस उपेक्षावृत्ति को छोड़कर धर्म रक्षार्थ मंदिर मूर्तियों की तरह शास्त्रों के प्रति अपनी भक्ति का परिचय देगी, भट्टारकजी के भंडार को भी प्रादर्श रूप में व्यवस्थित करेगी।
- मन्त्री-बीर सेवामन्दिर