________________ लघु के तीन भेद 1. लघुक, 2. लघुतरक और 3. यथालघुक / लघुस्वक के तीन भेद 1. लघुस्वक, 2. लघुस्वतरक और 3. यथालघुस्वक / गुरु प्रायश्चित्त महा प्रायश्चित्त होता है उसकी अनदधातिक संज्ञा है। इस प्रायश्चित्त के जितने दिन निश्चित हैं और जितना तप निर्धारित है वह तप उतने ही दिनों में पूरा होता है। यह तप पिकाप्रतिसेवना वालों को ही दिया जाता है। गुरुक व्यवहार : प्रायश्चित तप 1. गुरु प्रायश्चित्त-एक मास पर्यन्त अट्ठम तेला (तीन दिन उपवास) 2. गुरुतर प्रायश्चित्त- चार मास पर्यन्त दशम '.---चोला (चार दिन का उपवास) 3. गुरुतर प्रायश्चित--छह मास पर्यन्त द्वादशम3-पचोला (पांच दिन का उपवास)। लघुक व्यवहार/प्रायश्चित तप 1. लघु प्रायश्चित्त--तीस दिन पर्यन्त छद्र--बेला (दो उपवास) 2. लघुतर प्रायश्चित्त-पचीस दिन पर्यन्त चउत्थ' - उपवास / 3. यथालघु प्रायश्चित—बीस दिन पर्यन्त आचाम्ल / ' 1. लघुस्वक प्रायश्चित्त-पन्द्रह दिन पर्यन्त एक स्थानक --(एगलठाणो) 2. लघुस्वतरक प्रायश्चित्त-दस दिन पर्यन्त-पूर्वार्ध (दो पोरसी) 3. यथालघुस्वक प्रायश्चित्त-पांच दिन पर्यन्त--निविकृतिक (विकृतिरहित आहार) / 1. एक मास में पाठ अद्रम होते हैं--- इनमें चौवीस दिन तपश्चर्या के और आठ दिन पारणा के। अन्तिम पारणे का दिन यदि छोड़ दें तो एक माम (इकतीस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है। में छह दसम होते हैं इनमें चौबीस दिन तपश्चर्या के और छह दिन पारणे के इस प्रकार एक मास (तीस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है / 3. एक मास में पाँच द्वादशम होते हैं-इनमें पचीस दिन तपश्चर्या के और पाँच दिन पारणे के इस प्रकार एक मास (तीस दिन) गुरु प्रायश्चित्त का होता है। 4. तीस दिन में दस छुट्ट होते हैं- इनमें बीस दिन तपश्चर्या के और दस दिन पारणे के होते हैं। में तेरह उपवास होते हैं. इनमें तेरह दिन तपश्चर्या के और बारह दिन पारणे के / अन्तिम पारणे का दिन यहाँ नहीं गिना है। 6. बीस दिन में दस आचाम्ल होते हैं-इनमें दस दिन तपश्चर्या के और दस दिन पारणे के होते हैं / 7. पन्द्रह दिन एक स्थानक निरन्तर किये जाते हैं। 8. दस दिन पूर्वार्ध निरन्तर किये जाते हैं। 9. पांच दिन निर्विकृतिक आहार निरन्तर किया जाता है। 10. वह० उद्दे० 5 भाष्य गाथा 6039-6044 / [25] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org