Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
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वएज्जा पुगि वीरवत्ता पच्छा सत्थेणं अकमेज्जा ? गोयमा ! पुगि वा सत्थेणं अक्कमिता पच्छा बीत्रएज्जा, पुर्वित्र वा वीइवइत्ता पच्छा सत्थेणं अक्कमिज्जा ' इति अत्रसेवः तथा च चतुर्षु दण्डकेषु मथमदण्डक उक्तालापकत्रयात्मको देवस्य देवस्य च द्वितीयो दण्डकस्तु देवस्य देव्याथ, तृतीयो दण्डको देव्याश्च देवस्य, चतुर्थी दण्डको देव्याथ देव्याव बोध्यः इति मात्रः ॥ सू० ३ ॥ डॉ. गौतम ! महर्दिक देव अल्पर्द्धिक देव के बीच में से होकर निकल सकता है । 'से णं भंते! किं सत्ये णं अक्कमित्ता पभू, अणकमित्ता पभू' हे भदन्त ! वह शस्त्र से प्रहार करके निकलने में समर्थ है या विना प्रहार करके निकलने में समर्थ है ? उत्तर में प्रभु कहते है - 'गोयमा ! अकमित्ता विपभू अणकमित्ता वि पभू' हे गौतम ! वह उस पर आक्रमण करके भी निकल सकने में समर्थ है और विना आक्रमण कर के भी निकल सकने में समर्थ है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'से णं भंते! कि पुधि सत्येणं अक्कमित्ता पच्छा वीइवएज्जा, पुत्रिवीइवइत्ता पच्छा सत्थेणं अकमेज्जा ? हे भदन्त ! वह पहिले शस्त्र से आक्रमण करके निकल सकने में समर्थ है, वह उस पर शस्त्र से जो आक्रमण करता है तो निकलने से पहिले करता है या निकल चुकने के बाद करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम! 'पुत्र वा मत्थे अक्कमित्ता पच्छा वीइवएज्जा, पुवि वा वीइवइत्सा पच्छा सत्थेणं अकमिज्जा' वह उस पर पहिले भी प्रहार कर दे और
महावीर अलुना उत्तर- " हंता, वीइवएज्जा " हा, गौतम ! भद्धि દેવ અલ્પદ્ધિક દેવનો વચ્ચે થઈને નીકળી શકે છે.
गौतम स्वामीनी प्रश्न- " से णं भंते! किं सत्थे णं अक्कमित्ता पभू, अक्कमित्ति पभू " है लगवन् ! शुद्ध ते शखने! अहार रीने नीउजवाने સમર્થ બને છે, કે શસ્ત્રના પ્રહાર કર્યા વિના નીકળવાને સમથ અને છે?
पभू "
भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! अक्कमित्तावि पभू, अवक्कमित्तावि ” હે ગૌતમ! તે તેના પર શસ્ત્રના પ્રહાર કરીને પણ નીકળી શકે છે અને શસ્રના પ્રહાર કર્યાં વિના પણ નીકળી શકે છે.
गौतम स्वामीनो प्रश्न- " से णं भंते ! किं पुवि सत्थेणं अक्कमित्ता पच्छा बीइत्र एज्जा, पुव्वि वीरवता पच्छा सत्येणं अक्कमेज्जा ?" हे भगवन् ! તે પહેલાં તેના પર શસ્ત્રના પ્રડર કરીને તેની પાસે નીકળી શકવાને સમથ થાય છે? કે પહેલાં નીકળી ગયા બાદ આક્રમણુ (શસ્રના પ્રહાર) કરવાને સમર્થ હોય છે ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧