Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 758
________________ ७४४ भगवतीसूत्रे आहृतस्य सतः स विपुलो रोगातङ्कः क्षिपमेव उपशमं प्राप्तः, हृष्टोजातः, आरोग्यः बलिकशरीरः। तुष्टाः श्रमणाः, तुष्टाः श्रमण्यः, तुष्टाः श्रावकाः, तुष्टाः श्राविकाः, तुष्टाः देवाः, तुष्टा देव्यः, स देवमनुष्यासुरो लोकस्तुष्टो हृष्टो जातः, श्रमणो भगवान् महावीरो हृष्टतुष्टो जातः श्रमणो भगवान् महावीरो हृष्ट तुष्टो जातः ॥ मू० १९ ॥ टीका-अथ महावीरस्य वक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-'तए णं समणे' इत्यादि । 'तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई, सावत्थी भो नयरीओ कोट्टयाओ चेइयाओ पडिनिक खमइ' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरः अन्यदा कदाचित श्रावस्त्याः नगर्याः कोष्ठकान् चैत्यात् पतिनिष्कामति-निर्गच्छति, 'पडिनिक्ख. मित्ता वहिया जगवयविहारं विहरई' प्रतिनिष्क्रम्य-निर्गत्य, बहिः-बहिर्भागे जनपदविहारं विहरति, 'तेणं कालेणं, तेगं समरणं मेंढियगामे नाम नयरे होत्था, वण्णओ' तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, मेण्डिक ग्रामं नाम नगरम् आसीत् , वर्ण का, अस्य वर्णनम् औषपातिक नुमारं चम्पानगरी वर्णनवदवसे यम् , 'तस्स 'तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ' इत्यादि । टीकार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने महावीर के संबंध की वक्तव्यता का प्ररूपण किया-'तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई सावत्थीओ नयरीओ कोट्टयाओ चेहयाओ पडिनिक्खमई' इसके बाद श्रमण भगवान महावीर किसी एक समय श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक चैत्य से निकले 'पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरई' निकल कर वे बाहर के जनपदों में विहार करने लगे। तेणं कालेणं तेणं समएणं में ढियगामे नाम नयरे होत्था' उस काल और उस समय में मेंढिकग्राम नामका नगर था। 'वण्णओ' इसका वर्णन औपपातिकसूत्र में वर्णित चंपानगरी के अनुसार जानना चाहिये। “तए ण समणे भगवं महावीरे अन्न या कयाइ" त्याह ટીકાર્થ-આ સૂત્રમાં સૂત્રકારે ભગવાન મહાવીરની વકતવ્યતાનું કથન युछे-" तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइं सावत्थीओ नयरीओ कोट्रयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ” त्या२ मा ७४ हिवसे श्रम समपान महावीरे श्रावस्ती नगरीन अ४४ चैत्यमाथी विडार ४ा. “पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ" नाजीर ती महान ४.५. होमा विहा२ ४२१॥ वाय. " तेणं कालेणं तेण समएण' में ढियगामे नाम नयरे होत्या" ते जे मन त समये, मदिआम नाभनु न२ हेतु. "वष्णओ" मी५५ति सूत्रमा पणित पानगरीन वन १ ते શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૧

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