Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 863
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० २१ गोशालकगतिवर्णनम् ૮૪૨ माने देवानाम् अनघन्यानुरकृष्टेन जघन्योत्कृष्टरहितेन सामान्येन त्रयत्रिंशत्सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता, तत्थ णं सुमंगलस्स वि देवस्स अजहन्नमणुको सेर्ण तेत्तीस सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता' तत्र खलु - सर्वार्थसिद्धे महाविमाने सुमङ्गलस्यापि देवस्य अजघन्यानुत्कृष्टेन जघन्योत्कुष्टर हितेन सामान्येनेत्यर्थः जयत्रिशत् सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञता, 'से णं भंते । सुमंगले देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंतं करेहि' हे भदन्त ! स खलु सुमङ्गलो नाम देव स्तस्मात् सर्वार्थसिद्धिक व देवलोकात् यावत् - आयु क्षयेण, भवक्षयेण स्थितिक्षयेण अनन्तरं चयं च्युत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्र उत्पत्स्यते ? इति गौतमस्य प्रश्नः स्वयमूहनीयः, भगवानाह - स खलु सुमङ्गलो देवः सर्वार्थसिद्धकातू देवलोकाद आयुर्भवस्थितिक्षयेण चयं युत्वा महाविदेहे वर्षे सेत्स्यवि, यावत् - भोत्स्यते, मोक्ष्यते, परिनिस्थिति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यतीति भावः ॥ मु० २१ ॥ , में देवों की जघन्य उत्कृष्ट रूप से रहित सामान्यरूप से केवल ३३ सागरोपम की स्थिति कही गई है । 'तस्थ णं सुमंगलस्स वि देवस्स अजहरणमणुकोसेण तेत्तीस सागरोवमाई ठिई पण्णसा' सो वहां सुमंगल देव की भी सामान्यरूप से ३३ सागरोपम की स्थिति कही गई है। 'से णं भंते! सुमंगल देवे ताभ देवलोगाओ जाय महाविदेहे वासे सिज्झिहि जाव अंतं करेहि' हे भदन्त ! वे सुमंगल देव उस सर्वार्थसिद्धिकविमान से यावत् आयु भव और स्थिति के क्षय हो जाने के अनन्तर समय में च्युत होकर कहां जावेंगे ? कहां उत्पन्न होवे गे ? इस गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं- हे गौतम! वे सुमंगलदेव सर्वार्थसिद्ध विमान से आयु, लव और स्थिति के क्षय हो जाने के कारण अनन्तर રૂપથી રહિત સ્થિતિ સામાન્યરૂપે ૩૩ સાગરોપમની જ કહી છે. तत्थ णं सुमंगल देवरस अजहण्णमणुकोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ત્યાં સુમ'ગલ દેવની પણ સામાન્ય રૂપે ૩૩ સાગરોપમની જ સ્થિતિ કહી छे. " से णं भंते! सुमगले देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंत करेeिs " औतम स्वामी सेवे प्रश्न पूछे छे - ते सुभगस દેવ તે સર્વાર્થસિદ્ધ વિમનમાંથી આયુ, ભવ્ર અને સ્થિતિને ક્ષય થઈ ગયા માદ, ત્યાંથી યંત્રીને કર્યાં જશે? કયાં ઉત્પન્ન થશે ? તેના ઉત્તર આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે કે-તેએ! ત્યાંથી વીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં મનુષ્ય રૂપે भ० १०५ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧ ܕܕ

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