Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 906
________________ __ भगवतीसूत्रे - - 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाब विहरई' हे भदन्त ! तदेवम्-भवदुक्तम् सत्यमेतद् , हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तम् सत्यमेवेति भावः तेनिसग्गी सम्मतो' तेजो निसर्गः समाप्तः, 'समत्तं च पन्नरसमं सयं एक्कसरयं' समाप्तं च पञ्चदशं शतम् एक सरकम्-एकसदृशकम् उद्देशवजितमित्यर्थः // सू० 23 // // इति श्री विश्वविख्यात-जगद्वल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषाकलितललितकलापालापकाविशुद्धगधपधनकग्रन्थनिर्मापक, बादिमानमर्दक-श्रीशाहूछत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त'जैनाचार्य पदभूषित-कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मवारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर -पूज्य श्री घासीलालबतिविरचिताया श्री "भगवतीसूत्रस्य" प्रमेयचन्द्रिका. ल्यायां व्याख्यायां पश्चदशंशतके प्रथमोद्देशकः समाप्तः॥१५-१॥ // पञ्चदशं शतकं सम्पूर्णम् // 'सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति' जाव विहरई' हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय सत्य ही है / हे भदन्त आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय सत्य ही है। 'तेयनिसग्गो सम्मत्तो' तेज निसर्ग समाप्त हुआ। सम्मत्तं च पनरसम सयं' इस प्रकार 15 वा शतक समाप्त हो गया। 'एकसरयं' यह 15 वां शतक उद्देशकों से रहित होने से एक समान है / / मू० 23 // जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलाल जी महाराज कृत "भगवतीसूत्र" की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके पन्द्रहवें शतक का पहला उद्देशक समाप्त // 15-1 // ॥पन्द्रहवां शतक समाप्त // આ શતકને અને મહાવીર પ્રભુનાં વચનને પ્રમાણભૂત ગણુને ગૌતમ स्वामी 3 छ 3-" सेवं भंते ! सेवं भंडे ! त्ति जाव विहरइ" " भगवन् ! આપે જે કહ્યું તે સત્ય જ છે. હે ભગવન્! આપનું કથન યથાર્થ જ છે.” આ પ્રમાણે કહીને મહાવીર પ્રભુને વંદણા નમસ્કાર કરીને તેઓ પિતાના स्थान मेसी गया, “सम्मत्तं च पन्नरसं सयं " म घरे / १५भु शत। सभात यु: “एक परयं" मा ५४भु शत: देशीथी डिनापाथी એક સમાન છે. સૂ૦૨૩ જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર”ની પ્રયદ્રિકા વ્યાખ્યાના પંદરમા શતકને પહેલે ઉદ્દેશ સમાપ્ત 15-1 || શતક 15 સમાપ્ત છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: 11

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