Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ ० २३ गोशालकगतिवर्णनम्
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स्वासं प्रापिताः, संसारमयोद्विग्नाः सन्तो दृढ प्रतिज्ञं केवलिनम् वन्दिष्यन्ति, 'वंदिता तस्स ठाणस्स आलोएहिंति निंदिहिंति जान पडिवज्जिहिति' वन्दित्वा तस्य स्थानस्य अविचारम् आलोवयिष्यन्ति निन्दिष्यन्ति यावद गर्हिष्यन्ते यथा प्रातिं प्रतिपरस्पन्ते स्वीकरिष्यन्ति 'तर णं से दृढप्पन्ने केवली बहू वासाई केवल परियागं पाउणदिइ' ततः खलु स दृढमविज्ञः केवली बहूनि वर्षाणि केवलपर्यायं पालयिष्यति, 'पाउणित्ता अप्पणो आउसे जाणित्ता भत्तं पञ्चकखाहि' बहूनि वर्षाणि केवलिपर्यायं पालयित्वा आत्मन आयुः शेषम् ज्ञात्वा भक्तम् प्रत्यारूपास्यति 'एवं जहा उबवाइए जान सव्वदुक्खाणमंतं काहि एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा औपपातिके यावत् च सेत्स्यसे, भोत्स्यते, मोक्ष्यते, परिनिर्वास्यति, सर्वदुःखानामन्तं करिष्यतीति,
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द्वारा त्रास को प्राप्त होकर एवं संसारभय से उद्विग्न होकर उन दृढप्रतिज्ञ केवली को वन्दना करेंगे । 'वंदिता णमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोएहिंति, निंदिहिंति जाब पड़िबज्जिहिंति' बन्दना करके फिर वे उस स्थान के अतिचार की आलोचना करेगे, निन्दा करेंगे, यावत् - ग करेगे - यथायोग्य प्रायश्चित्त लेंगे । 'तए णं से दढ़पइन्ने केवली बहूहिं वासाई केवल परियागं पाउणहिर' वे दृढप्रतिज्ञ केवली अनेक वर्षो तक केवलिपर्याय का पालन करेंगे । ' पाउणित्ता अप्पणो आउसे सं जाणित्ता भत्तं पच्चाक्खाहिद्द' पालन करके आयुशेष जानकर वे भक्त. प्रत्याख्यान करेंगे । ' एवं जहा उववाइए जाव सव्वदुक्खाणमंत काहिह ' पूर्वोक्तरीति से जैसा औपपातिक सूत्र में कहा गया है उसी प्रकार से वे सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे मुक्त होंगे, परिनिर्वात होंगे, और सर्वदुःखो का अन्त करेंगे ।
ત્રસ અને ત્રાસિત થઈને (કેવલીના તે કથનને કારણે સ`સાર ભયથી ઉદ્વિગ્ન थाने) ते हृढप्रतिज्ञ देवसीने वडा १२शे. “ वंदित्ता तर ठाणरस आलोएहिति, निंदिहिति, जान पडिवज्जिहिति" वहा र्या माह, तेथे ते स्थानना (પાપસ્થાનાના) અતિચારાની આલેચના કરશે, નિદા કરશે, ગાઁ કરશે અને यथायोग्य प्रायश्चित्त बेथे “तए णं' से दढपइने केवली बहूहि वा साई केवल - परियागं पाणिहिइ " त्या२ બાદ તે દૃઢપ્રતિજ્ઞ કેવળી અનેક વર્ષ સુધી ठेवसिपर्यायनुं पासन ४२शे, “ पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं जाणित्ता, भत्तं पचक्खाहिइ " पालन हरीने पोतानु' थोडु' ग्मायुष्य माडी रघु' छे ते लघुशे અને અનશન ધારણ કરશે " एवं जहा उत्रवाइए जाव सव्वदुक्खाणमंत काहिइ " पूर्वेति रीते, औपपाति सूत्रमा उद्या अनुसार, तेथे सिद्ध थशे, બુદ્ધ થશે, મુકત થશે, પરિનિર્વાંત થશે અને સમસ્ત દુઃખાથી રર્હુિત થઈ જશે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧