Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 895
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० २३ गोशालकगतिवर्णनम् ८८१ जाव परोसहोवसग्गा फुसंतु' मा खलु शीतम् , मा खलु उष्णं यावत् मा खलु एनां परिषहोपसर्गाः स्पृशन्तु इति बुद्धया सा मुष्ठु संगोपिता आसीदित्यर्थः, 'तएणं सा दारिया अन्नया कयाइ गुम्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणि अंतरा दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किचा' ततः खलु सा दारिका-बालिका, अन्यदा कदाचित् गुर्विणी-गर्मिणी भूत्वा श्वशुरकुलात-पतिगृहाद , कुलगृहपित्गृहं नीयमाना निजभ्रात्रा, अन्तरा-मध्ये दावाग्निज्वालाभिहता-दावानलज्वालापीडिता सती, कालमासे कालं कृत्वा 'द हिणिल्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उबवजिहिइ' दाक्षिणात्येषु देवेषु देवतया उत्पत्स्यते, ‘से णं तभोहितो जिस प्रकार से बहुत ही देखभाल के साथ सुरक्षित स्थान में रखा जाता है उसी प्रकार से यह भी देखभाल के साथ सुरक्षित स्थान में रखी जावेगी। 'मा णं सीयं, मा णं उपह, जाव परिसहोवसग्गा, फुसंतु' इसे कभी ठंड-शीत की वाधा न हो, कभी उष्ण-गर्मी की बाधा न हो, तथा शीत गर्मी दोनों की बाधा न हो और न किसी भी प्रकार से इसे परीषह और उपसर्ग दुःखी करसके इस बात का विशेष ध्यान रखा जावेगा। 'तरण सा दारिया अन्नया कयाइ गुम्विणी, ससुंरकुलाओ कुलघर निजजमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल. मासे कालं किच्चा' एक दिन की बात होगी कि उस दारिका की गर्भवती अवस्था में उसके श्वसुरगृह से-पतिगृह से उसका भाई ले जायेगा सो रास्ते में वह दावाग्नि की ज्वाला से झुलस जायगी। अतः वह कालमाप्त में काल कर 'दाहिगिल्लेसु अग्गिकुमारेसु देवेसु देवत्ताए उववन्जिहिई' दक्षिणदिशा के अग्निकुमार देवों में देव की पर्याय से उत्पन्न हो जायगी। ‘से णं कमोहितो आणंतर उव्वहिता माणुस्सं उण्हं, जाव परीसहोवसग्गा, फुसंतु" ते ४ ५ 80 सहन न ४२वी ५डे, ગરમી સહન ન કરવી પડે, ઠંડી ગરમી બને સહન ન કરવા પડે, તથા કઈ પણ પ્રકારના પરીષહ અને ઉપસર્ગો તેને દુઃખી ન કરે તેનું વિશેષ ધ્યાન रामपामा माशे, “तए णं सा दारिया अन्नया कयाइ गुठ्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवगिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा" त्यार બાદ તે ગર્ભવતી થશે. કેઈ એક દિવસે તે ગર્ભવતી અવસ્થામાં સાસરેથી પિતાના ભાઈની સાથે પિતૃ જવા માટે નીકળશે. રસ્તામાં દાવાગ્નિની જવાળા ઓ વડે દાઝી જવાને કારણે કાળને અવસર આવતા કાળ કરીને हक्षिा अभिमान वामा हेवा पर्याय उत्पन्न थशे. “से णं तओ भ० १११ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧

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