Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 878
________________ भगवतीसूत्रे 'सेणं तो जाव उव्वहिता जाई इमाई खहयरविहाणाई भवंति' स खलु विमलवाहनस्ततः-रत्नममा नरकात यावत्-अनन्तरम् उदृत्य, यानि इमानि-वक्ष्यमाणानि खेचरविधानानि -खेवरभेदा, भवन्ति 'तं जहा चम्मपक्खीण लोमपक्खीणं समुग्गपक्खीणं विययपक्खीणं' तानि यथा-चमाक्षिणाम्-बलाली पभृतीनाम् , लोमपक्षिणाम् इंसप्रभृतीनाम् , समुद्गकपक्षिणाम-समुद्गकाकारपक्षवतां मनुष्यक्षेत्रबहिर्वर्तिनाम् उड्डयन कालेऽपि संकुचितपक्षवताम् , विपतपक्षिणाम्विस्तारितपक्षवतां समयक्षेत्रबहिर्तिनाम् इत्यर्थः अन्तिमद्वयानां मनुष्यक्षेत्रबहिवर्तित्वात् 'तेसु अणेगसयसहस्तखुतो उदाइत्ता उदाइसा तत्थेव तत्थेव भुज्जो भुज्जो पञ्चायाहिइ' तेषु प्रोक्तखेवरेषु अनेकशतसहस्रकृत्या-अनेक लक्षनारम् उदृत्य उदृत्य-मृत्वा मृत्वा तत्रैव तत्रैव-तेषु तेषु भवेष्वेव भूयो भूयः-पौनः पुन्येन प्रत्यायास्थति-उत्पत्स्यते-'सम्वत्थ विणं सत्थवज्झे दाहवक्कं. जाई इमाईखहयरविहागाई भवंति' वह विमलवाहन उस रत्नप्रभा पृथिवी से निकल कर अनन्तर समय में ही, जो ये खेचर के भेद कहे जानेवाले हैं जैसे-'चम्मपक्खीणं, लोमपक्खीणं, समुग्गपक्खीणं विययपक्खीणं' चर्मपक्षी-चमगादड वगैरह लोमपक्षी हँस वगैरह, समुद्मकपक्षी-समुदगक आकार के पक्षवाले पक्षी जो कि मनुष्यक्षेत्र से बाहर रहते हैं और उड़ने के समय में भी जिनके पक्ष संकुचित रहा करते हैं ऐसे पक्षी तथा वितनपक्षी-विस्तारित पक्षवाले पक्षी-ये भी मनुष्यक्षेत्र से बाहिर रहते हैं-'तेसु अगेगस यसहस्सा खुत्तो उद्दाइत्ता उदाइत्ता तस्थेव तत्थेव भुज्जो २ पच्चायाहिइ' इन पक्षियों में अनेक लाखबार मर २ करके वहीं २ पर उन्हीं २ भवों में ही-बार वार उत्पन्न होगा। 'सव्वस्थ विणं सत्थवज्झे दाहवकंतीए कालमासे कालं किच्चा " से ण तो जाव उववट्टित्ता जाई इमाई खहयरविहाणाई भवंति " ते विभमानना ७१ २त्नमा पृथ्वीमाथी उतना ४शन, “ चम्मपक्खीण, लोमपक्खीण, समुग्गपक्खीण वीययपक्खीण'" य पक्षी-यामयिया वगैरे, લોમપક્ષી–હંસ વગેરે, સમુદ્ગક પક્ષી–સમુદ્ગક આકારની પાંખોવાળાં પક્ષી જે મનુષ્યક્ષેત્રની બહારના ક્ષેત્રોમાં જ રહે છે અને ઉડતી વખતે પણ તેમની પાંખે સંકુચિત રહે છે, તથા વિતતપક્ષી-વિસ્તારિત પાંખોવાળા પક્ષી, આ પક્ષીઓ પણ મનુષ્યક્ષેત્રની બહા૨જ રહે છે, આ ખેચરના જુદા न दीमा "तेसु अणेगप्रयसहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उदाइत्ता तत्थेव तत्थेव भुज्जोर पवायाहिह" से सा पक्षीमामा भने म पार भरी भरीन श शन मे समा वारपार उत्पन्न थशे. “सव्वत्थ वि ण सत्थवज्झे શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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