Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 876
________________ ८६२ भगवतीसवे द्वितीयमपि वारम् द्वितीयायां शर्करामभायां यावत्-पृथिव्याम् उत्कृष्ट कालस्थितिके नरके नैरयिकतया उत्पत्स्यते, स खलु ततोऽनन्तरम् उद्धृत्य द्वितीयमपि वारम् सरीसृपेषु-गोधादिभवेषु उपपत्स्यते, 'जाच किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठिइयंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उअवजिहिइ' यावत्-स खलु तत्रसरीसृपेषु शस्त्रवध्यः सन् दाहव्युत्क्रान्त्या-दाहोत्पत्त्या कालमासे कालं कृत्वा अस्यां रत्नप्रभायां पृथिव्याम् उत्कृष्टकालस्थिति के नरके नैरयिकतया उपपत्स्यते, 'जाव उन्मट्टित्ता सण्णीसु उवन्निहिइ' यावन स खलु ततोऽनन्तरम् उदृत्य संशिषु उत्पत्स्यते 'तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा असण्णीम उववज्जिहिइ' तत्रापि खलु-संज्ञिमवेषु, शस्त्रवध्यः सन् यावत् दाहव्युत्क्रान्त्या-दाहोत्पत्या कालमें कालकर दितीयवार भी द्वितीय शर्कराप्रभा पृथिवी में उत्कृष्टकाल की स्थितिवाले नरकावास में नरक की पर्याय से उत्पन्न होगावहां से वह मरकर फिर अनन्तर समय में ही दुवारा भी गोधा आदि के भवों में उत्पन्न होगा। 'जाव किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालहिश्यंसि नरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिई' यावत्वह सरीसृपों में शस्त्रवध्य होता हुआ दाह की उत्पत्ति से कालमास में काल करके इस रत्नप्रभा पृथिवी में उत्कृष्टकाल की स्थितिवाले नरका. वास में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। 'जाव उव्वाद्वित्ता सण्णीसु उवय. जिनहिइ' इसके बाद वह वहां से उवृत्त होकर संज्ञि जीवों में उत्पन्न होगा। 'तस्य विगं सत्थवज्झे जाव किच्चा असणगील उवज्निहिइ' वह वहां संज्ञिभवों में भी शस्त्रवध्य होता हुआ यावत्-दाहकी व्युत्क्रान्ति પીડાથી કાળ અવસરે કાળ કરીને ફરીથી તેને જીવ બીજી શર્કરા પભા પ્રવીમાં ઉત્કૃષ્ટ કાળસ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં નારક રૂપે ઉત્પન્ન થશે ત્યાંની આયસ્થિતિને ક્ષય થતાં જ તે ત્યાંથી નીકળીને ફરી કાચિંડા આદિના ભવેમાં SHA 22. " जाव किच्चा इमीखे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालदिइ. यसि नरयसि नेरइयत्ताए उधज्जिहिय" त्यां ५ (सरीसपाना समां ५५) તેને શસ્ત્ર વડે વધ થવાથી દાહ ઉત્પન્ન થવાથી કે કાળને અવસર આવતા કાળ કરીને પડેલી રત્નપ્ર માં પૃઓમાં ઉત્કૃષ્ટ કાળસ્થિતિવાળા નરકાવાસમાં ना२४ ३२ उत्पन्न थशे. “जाव उव्वट्टित्ता सण्णीसु उबवज्जिहिइ" त्यांनी આરસ્થિતિનો ક્ષય થતાં તે ત્યાં થી નીકળીને સંપત્તિ જીવમાં ઉત્પન્ન થશે. 'तत्य गं सत्थवज्झे जाव किच्चा असणीसु उववज्जिहिइ' सीमा ५५ શસ્ત્રવડે વધ્ધ થઈને દાહની પીડાથી પરિતપ્ત થઈને કાળને અવસરે કાળ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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