Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 857
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ०१सू. २१ गोशालकतिवर्णनम् ८४३ पूर्वोक्तविशेषणविशिष्टः आसीः, अन्ते च छद्मस्थ एव-छद्मस्थावस्थायामेवकालगता-मृतोऽसि 'तं जइ ते तया सव्वाणुभूइणा अणगारेणं पभुणा वि होउणं सम्मं सहियं, खमियं, तितिक्खियं, अहियासियं' तत् तस्मात् कारणात् , यत् तब तदा-तस्मिन् काले, सर्वानुभूतिना अनगारेण प्रभुणाऽपि भूत्वा-समर्थेनापि भूत्वा तेन सम्यक्तया सोढम्-अपराधसहन कृतम् , क्षान्तम्--क्षमा कृता, तितिक्षितम्-तितिक्षा कृता, अध्यासितम्-शान्तिपूर्वकं सहितम् , अथ च 'जइ ते तया मुनक्खत्तंण अणगारेणं जाव अहियासियं' एत् तत्र तदा-तस्मिन् काले मुनक्षत्रेण अनगारेण, यावत्-प्रभुणाऽपि-समर्थेनापि भूत्वा सता सम्यक् प्रकारेण सोढम्अपराधसहनं कृतम् , क्षान्तम्-क्षमा कृता, तितिक्षितम् तितिक्षा कृता, अध्यासितम्शान्तिपूर्वकं सहनशक्ति प्रदर्शिता 'जइ ले तया समणेणं भगवया महावीरेणं पभुणा वि जाव अहियासिय' यत् खलु तत्र पूर्व मवीयगोशालस्य तदा-पूर्वभवे श्रमणेन श्रमणजनों का विरोध किया था। इत्यादि पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट हुए तुमने छद्मस्थावस्था में ही काल किया था। 'तं जइ ते तया सव्वाणु. भूइणा अणगारेणं पभुणा वि होऊण लम्मं सहियं खमियं तितिक्खियं, अहियासियं' उस समय यदि सर्वानुभूति अनगार ने समर्थ होते हुए भी जिस प्रकार से तुम्हारे द्वारा की गई मनमानी को अच्छी प्रकार से-विना किसी विकार मात्र के-सहन कर लिया. तुम्हारे अपराध को क्षमा कर दिया, शांतिपूर्वक अपराध सहन करने की अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया, । 'जइ ते तया सुनश्वत्त अणगारेणं जाव अहिया सियं' तथा यदि उस समय नक्षत्र अनगार ने-तुम्हारे गोशाल के भव में-समर्थ होते हुए भी जिस प्रकार से तुम्हारे अपराध को सहन किया, तुम्हारे अपराध की क्षमा की, शांतिपूर्वक अपराध सहन करने की अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया, 'जइ ते तया समणेणं भगवया महावीरेणं पभुणा वि जाव अहियासियं' यदि उस समय श्रमण भग. लावणात छअस्थमस्थामा ण हतो. "तं जाते तया सव्वाणुभूइणा अणगारेण पभुणा वि होऊण' सम्म सहिय खमिय तितिक्खियं, अहियासिय" त समये न स भूति मगार तमन शिक्षा १२वान સમર્થ હતા છતાં પણ તેમણે તમારા અપરાધને (તેમની સામે તેલેક્યા છોડવારૂપ અપરાધને) નિર્વિકાર ભાવે સહન કર્યો હતે, તમારે અપરાધને ક્ષમાની દૃષ્ટિએ જે હો, શાંતિપૂર્વક અપરાધ સહન કરવાની પોતાની शतिनु प्रशन यु तु, “जइ ते तया समणेण भगवया महावीरेणं पभुणा वि जाव अहियासिय" तथा तमा। ते १ श्रम समपान શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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