Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 856
________________ भग पतीसूत्रे प्रयोगं करिष्यति, 'ओहिं पउजेता विमलवाहणस्स रणो तीयद्धं ओहिणा आमोएहिई' अवधिम्-अरधिज्ञानम् प्रयुज्य विमलवाहनस्य राज्ञः अतीतादाम्अतीवकालम् , अधिना-अधिज्ञानेन आमोगयिष्यति-ज्ञास्यति 'आभोएत्ता विमलवाहणं रायं एवं वइहिई' आभोग्य ज्ञात्वा विमलवाहनस्य अतीतदशाम् अवविज्ञानेन विज्ञाय विमलवाहन राजानम् एवम्-वक्ष्यमाणप्रकारेण, वदिष्यति'नो खलु तुमं विमलवाहणे या, नो खलु तुमं देवसेणे राया, नो खलु तुम महापउमेराया' नो खलु विमलवाहनो राजा असि, नो खलु त्वं देवसेनो राजा असि, नो खलु वं महापमो राजा असि, अपि तु 'तुमं णं इओ तच्चे भषगहणे गोसाले नामं मंखलिपुत्ते होत्था, समणघायर जाव छउमत्थे चेव कालगए' स्वं खलु इत:--अस्माद् भवात्-तृतीए भवग्रहणे गोशालो नाम मंखलिपुत्रः आसीः, अथ च श्रमणघातको यावत्-श्रमणमारका, श्रमणप्रत्यनीकश्चेत्यादिअपने अवधिज्ञान का प्रयोग करेंगे अर्थात् अवधिज्ञान से देखेंगे-'ओहिं पउजेत्ता विमलवाहणस्स रन्नो तीयद्धं ओहिणा आभोएहिइ' अपने अवधिज्ञान का प्रयोग करके तब वे विमलवाहन राजा के भूतकालकोअवधिज्ञान से जान जावेंगे 'आमोएत्ता विमलवाहणं रायं एवं वइहिइ' जानकर फिर वे विमलवाहन राजा से ऐसा कहेंगे-'नो खलु तुम विमलवाहणे राया, नो खलु तुमं देवसेणे राया, नो खलु तुमं महापउमे राया' तुम विमलवाहन राजा नहीं हो, तुम देवसेन राजा नहीं हो तुम महापद्म राजा नहीं हो अपि तु 'तुमं इओ तच्चे भवगहणे गोसाले नामं मंखलिपुत्ते होत्था, समणघायए जाब छउमस्थे चेव कालगए' तुम इससे पहिले तीसरे भव में मंखलिपुत्र गोशाल थे, उस समय श्रमणजनों का घात किया था, श्रमणजनों को मारा था, एवं “ओहि पउजेत्ता विमलवाहणस्स रन्नो तीयद्धं ओहिणा ओभोएहिइ" पोताना અવધિજ્ઞાનને પ્રયોગ કરીને તેઓ વિમલવાહન રાજાના ભૂતકાળને અવધિज्ञान 43 me . "आओएत्ता विमलवाहण राय एवं वइहि” भने तसा विभान ने भी प्रमाणे शे-“नो खलु तुम विमलवाहणे राया, ना खलु तुम देवसेणे राया, नो खलु तुम महापउमे राया” तमे विभ. લવાહન રાજા નથી, તમે દેવસેન રાજા નથી, તમે મહાપ રાજા પણ નથી. ५२न्तु " तुम ण इओ तच्चे भवगहणे गोसाले नाम' मंखलिपुत्ते होत्था, समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए" तें मानी पडेai alon wqzi મંખલિપુત્ર ગોશાલ હતા. તે ભવમાં તે શ્રમને ઘાત કર્યો હતો, શ્રમણોને માર્યા હતા, શ્રમણને વિરોધ કર્યો હતે ઈત્યાદિ પૂર્વોકત વિશેષ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧

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