Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 765
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २० १५ उ० १ सू० १९ रेवतीदाननिरूपणम् ७५१ धर्माचार्यस्य धर्मोपदेशकस्य श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य शरीरके विपुल:प्रचुरो, रोगातङ्कः, प्रादुर्भूतः, उज्ज्वल:-अत्यन्तदाहजनकः, यावत् , छद्मस्थ एवं कालं करिष्यतीति 'वइस्संति य णं अन्नतिथिया छउमत्थे चेव कालगए' वदिष्यन्ति च खलु अन्यतीथिकाः छमस्थ एइ-छन्नस्थावस्थायामेव, महावीरः कालगत:मृतः इति 'इमेणं एयारवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावण भूमीओ पच्चोरुहइ' अनेन-पूर्वोक्तेन- एतद्रूपेण महता मनोमानसिकेनहार्दिकेन दुःखेन अभिभूतः-व्याप्त सन् , आतापनाभूमितः प्रत्यव रोहति-अवतरति, 'पच्चोरुहित्ता जेणेव मालुराकच्छए तेणेव उपागच्छई' प्रत्यवरुह्यअस्तीर्य, यत्रैव मालुकाकक्षक-चनम् प्राप्तीत् तत्रैव उपागच्छति, 'उआगच्छित्ता मालुपाकच्छगं अंतो तो अशुपविसइ' उपागत्य, मालुकाकक्षकम् , अन्तः अन्त:आभ्यन्तरे अनुमविशति, 'अणुपविसित्ता महया महया सद्देणं कुहु कुहुस्स परुण्णे' धर्मोपदेशक श्रमण भगवान महावीर के शरीर में विपुल-प्रचुर रोगातङ्क प्रकट हुआ है। यह अत्यन्त दाहजनक है यावत् वे इस कारण छमस्थावस्था में ही काल कर जावेंगे तब 'वहस्संति य णं अतिथिया छ उमस्थे चेष कालगए' अन्य तीर्थिक जन कहेगे-कि छमस्थावस्था में ही महावीर कालगत हो गए हैं 'इमेणं एयारवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोरुहा' इस प्रकार के इस हार्दिक दुःख से व्याप्त होकर वे सिंह अनगार आतापनभूमि से नीचे उत्तरे 'पच्चोरुहिता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उशगच्छई' नीचे उतर कर वे जहां मालुकाकक्ष वन था उसी ओर चल दिये। 'उवागच्छित्ता मालुया कच्छगंतो २ अणुपविसई' चलकर वे मालुकाकक्ष पहुँचे-वहां पहुँचकर वे उसके भीतर गये 'अणुपविसित्तामहया र सद्देणं ૨માં વિપુલ ગાતંક પ્રકટ થયેલ છે. તે ઘણેજ દાહજનક છે, અને આ शगना १२ तसा छमस्थ अवस्थामा 1 0 शशे. “ वइस्संति य ण अन्नतित्थिया छउमत्थे चेव कालगए " अन्य तीथि । मे री महावीर साभा छस्थ अवस्थामi on धर्म पाभी गया. " इमेणं एयारूवेणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे आयावणभूमीओ पच्चोर" આ પ્રકારના માનસિક દુઃખથી વ્યાપ્ત થઈ ગયેલે તે સિંહ અણગાર मातापना भूमि ५२थी नाय तो. पचोरहित्ता जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उत्रागच्छद" त्यांथी नीय तरीने ते भाक्ष बनमा गया. “ उवाग. च्छित्ता मालुयाकच्छगं अंतो२ अणुपविसइ" त्यां गया माह तमामे तेवनना पधारे थुना मागमा प्रवेश या. “अणुपविसित्ता महया२ सणं कुहुकु શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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