Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 776
________________ ७६२ भगवतीसूत्रे अनुगच्छति-सम्मुखं गच्छति, अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ' सप्ताष्टपदानि अनुगम्य, त्रिकृत्व:-त्रिवारम् आदक्षिणपदक्षिणं करोति, 'करित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं चयासी'-कृत्वा वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा, एवं वक्ष्यमाणपकारेण अवादीत्-'संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पओयण ?' भो देवानुपियाः ! संदिशन्तु-अज्ञापयन्तु खलु भवन्त स्तावत् भवतां किमागमनप्रयोजनं वर्तते ? 'तए णं से सीहे अणगारे रेवई गाहा. वइणि एवं वयासि' ततः खलु स सिंहोऽनगारः रेवती गाथापत्नीम् एवम्वक्ष्यमाणमकारेण अवादी-एवं खलु तुमे देवाणुप्पिये ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्टाए दुवे कोयसरीरा उबक्खडिया, तेहि नो अट्ठो' हे देवानुपिये ! गच्छई उठ कर वह सिंह अनगार के सन्मुख सात आठ पैर आगे गई । 'अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ' आगे जाकर उसने तीनवार उनका आदक्षिण प्रदक्षिणाकिया। 'करिता चंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं चयासी', आदक्षिण प्रदक्षिण करके उसने उनकी वंदना की, नमस्कार किया वन्दना नमस्कार करके फिर उसने उनसे ऐसा पूछा-'संदिसंतु णं देवाणुपिया ! किमागमणप्पओयणं' हे देवानुप्रिय! आप आज्ञा दें, आपके आनेका क्या प्रयोजन है ? 'तए णं से सीहे अणगारे रेवई गाहावइणि एवं वयासी' तब सिंह अनगार ने रेवती गाथापत्नी से इस प्रकार कहा -एवं खलु तुम देवाणुप्पिये! समणस्स भगवो महावीरस्व अट्ठाए दुवे कवोयसरीरा उवक्खडिया, तेहिं नो अट्ठो' हे देवानुनिये! तुमने श्रमण भगवान महावीर के लिये दो कपोतशरीर-कूष्माण्डफल पकायेचाताना मासनेथी 26. “ अब्भुद्वित्ता सीहं अणगारं सत्तटुपयाई अणुगच्छइ" ही ते सात मा8 mai तमनी साम ७. “अणुगच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ" सामे ४७नत्र वा२ तेभनु माक्षिय प्रहक्षिण श्यु". "करित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी" साइक्षिण પ્રદક્ષિણ કરીને તેણે તેમને વંદણા કરી અને નમસ્કાર કર્યા. વંદણાનમસ્કાર शत! तभने मा प्रमाणे पूछयु-" संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणपओयणं " वानुप्रिय! ३२मावा, मापन गडी मागभननु शु प्रया. छ १" तए णं से सीहे अणगारे रेवई गाहावइणि एवं वयासी" त्यारे તે સિંહ અણગારે તે ગાથાપની રેવતીને આ પ્રમાણે જવાબ આપ્યા" एवं खलु तुम देवाणुप्पिये ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अट्राए दुवे कवोयसरीरा उबक्खडिया, तेहिं नो अट्ठो” नुप्रिया ! तमे जवान भी શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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