Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 852
________________ ८३८ भगवतीसूत्र 'तस्स गं सयदुवारस्त नपरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे एत्थ णं सुभूः मिभागे नामं उज्जाणे भविस्सई तस्य खलु शतद्वारस्य नगरस्य बहिर्भागे उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे ईशान कोणे अत्र खलु सुभूमिभागं नाम उद्यानम् भविष्यतिकीदृशं तदुद्यानमित्याह-'सम्बोउय, वण्णो ' तदुधानम् सर्वतु सम्भवपुष्पफल पमृद्धम् आसीदित्यादि वर्णक:-वर्णनम् अन्यत्र कृतम् अबसेयम् , 'तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहो पउप्पर सुमंगले नाम अणगारे जाइ संपन्ने जहा धम्मघोसस्स वण्णभो' तस्मिन् काले, तस्मिन् समये विपलस्य अर्हतः प्रपौत्र:-शिष्यसन्तानः, सुमङ्गलो नाम अनगारो जातिसम्मन्नो यथा धर्मघोषस्य-एकादशशतकस्य एकादशोदेशकाभिहितस्य अनगारस्य वर्णकः-वर्णनम् तथैव अस्यापि सुमङ्गलस्य वर्णनमक सेयम् , 'जाव संवित्तविउळतेय लेस्से तिन्नागोवगए सुभूमिभागस्स अर्थ को स्वीकार कर लेगा। 'तस्स णं सयदुवारस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्यिमे दिसीमागे एस्थ णं सुभूमिभागे नाम उज्जाणे भविस्सइ' उस शतबार नगर के बाहर उतर पौरस्त्यदिग्भाग में-ईशान कोने में-लु नूमि भाग नाम का एक उद्यान होगी । 'सयोउय वण्यओ' यह समस्त ऋतु संबंधी पुष्प फलों से समृद्ध होगा-उद्यान का इस प्रकार का वर्णन अन्यत्र किया गया है । 'तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहो पउपए सुमंगले अणगारे जाइसंपन्ने जहा धम्मघो. सस्स बण्णभो' उस काल और उस समय में विमल अर्हन्त के प्रपौत्र-शिष्यसन्तान सुमंगल नाम के अनगार होंगे-इन का वर्णन एकादशशतक में एकादश उद्देशक में कहे गये धर्मयोष अनगार के जैसा जानना चाहिये। ये सुमंगल अनगार जातिमान होंगे। १-मुनिनानी (१३६ माय२६ नही ४२वान २ ४२शे. "तस्स णं सय दवारस्थ नयरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिखीमागे एत्य णं सुभूमिभागे नामं उज्जाणे भविस्मई' शद्वार नगरनी २ शान मां सुलभिमाग नामनु Gधान & "सव्वोउय वण्णओ" त सधणी ऋतुमान सोधी યુક્ત હશે, ઈત્યાદિ વર્ણન અન્ય ગ્રંથોને આધારે ગ્રહણ કરવું જોઈએ. "तेणं कालेणं वेण समएणं विमलस्स अरहओ पउत्पए सुमंगले नाम अणगारे जाइसंपन्ने जहाधम्मघोसरस वण्ण ओ" ते अणे भने त समये विम. તના પ્રપૌત્ર-શિષ્યના શિષ્ય-સુમંગલ નામના અણગાર હશે. ૧૧ માં શતકના ૧૧ માં ઉદ્દેશામાં ધર્મ ઘેષ અણગારનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, मे सुम भागार जतिपन्न . “जाव संवित्तविउलतेय. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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