Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 853
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २० १५ उ० १ सू० २१ गोशालकगतिवर्णनम् ८३९ उज्जाणस्स अदूरसामंते छठें छटेणं अणिक्वित्तेणं जाव आपावेमाणे विहरिस्सइ' यावत्-कुलसम्पन्ना, बलसम्पन्नः सुसङ्गालोऽनगारः संक्षिप्तविपुलतेजोलेश्य:संक्षिप्ता-अायोगकाले संकोचिता, विपुला-प्रयोगकाले प्रचुरा तेजोलेश्या यस्य येन वा स तथाविधः, त्रिज्ञानोपगतः-मतिश्रुतावधिरूपज्ञानत्रयविशिष्टः सुभूमि भागस्य अरसामन्ते-नातिदूरे नातिप्रत्यासन्ने षष्ठपष्ठेन अनिक्षिप्तेन-निरन्तरेण यावत्-तपाकर्मणा आत्मानं भावयन् आतापनाभूमौ-ऊर्ध्ववाहू प्रगृह्य प्रगृह्य आतापयंश्व विहरिष्यति, 'तए णं से विमल वाहणे राया अन्नया कथाइ रहचरिय काउं निजनाहिद' ततः खलु स विमलवाइनो राजा अन्यदा कदाचित् स्थचयाँरथक्रीडां कतुं निर्यास्यति-नगरात् निर्गमिष्यति, 'तए णं से विमलवाहणे राया 'जाव संखित्तविउलतेयलेस्से तित्राणोवगए सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदरसामंते छ8 छटेणं अणिक्खित्तेणं जाव आयावेमाणे विहरिस्लाई कुलसंपन्न, पलसंपन्न ये सुमंगल अनगार संक्षिप्त विपुल तेजोलेश्या. वाले होंगे-अर्थात् जिनकी तेजोलेश्या अप्रयोग काल में संक्षिप्त और प्रयोगकाल में विस्तार को प्राप्त हो जाय ऐसी तेजोलेश्यावाले ये सुमं. गल अनगार होंगे, मतिज्ञान श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान इन तीन ज्ञानों से विशिष्ट होंगे, इस प्रकार के इन विशेषणों से युक्त सुमंगल अनगार सुभूमिभाग उद्यान से कुछ दूर पर निरन्तर छह छट्ट की तपस्या से आत्मा को भावित करते हुए ऊर्च बाहु होकर आतापना भूमि में स्थित होंगे। 'तए णं से विमल वाहणे राधा अनया कयाई रहचरियं कानिज्जाहिइ' तब किसी एक सप्रय विमलवाहन राजा सुभूमिभाग उद्यान से कुछ दूर रथचर्या-रथक्रीडा करने के लिये आवेगालेस्से तिन्नाणोवगए सुभूमिभागस्स उज्ज्ञाणस्थ अदूरसामते छ छटेणं अणि. क्खित्तेण जाव आयावेमाणे विह रिस्सइ" इससपन्न, सपन्न ते सुमन અણગાર સંક્ષિપ્ત અને વિપુલ તેલેશ્યાવાળા હશે. એટલે કે અપ્રાગકાળે સંક્ષિપ્ત અને પ્રવેગકાળે વિપુલ એવી તે જાલેશ્યાથી તેઓ યુક્ત હશે. તેઓ મતિજ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન અને અવધિજ્ઞાન આ ત્રણે જ્ઞાનથી સંપન્ન હશે. એવા તે સમંગળ અણગાર સુભૂમિભાગ ઉદ્યાનથી બહુ દૂર પણ નહી અને બહ સમીપ પણ નહી એ સ્થાને, નિરતર છઠ્ઠને પારણે છ૪ની તપસ્યા વડે આત્માને ભાવિત કરતા, આતાપના ભૂમિમાં બને હાથ ઊંચા રાખીને સૂર્યની सामे AAI AAI मातint as २. श. "तए णं से विमलवाहणे राया अन्नया कयाइ रहचरिय काउ' लिज्जाहिइ" त्यारे त विभसवा २ सम મિભાગ ઉદ્યાનથી થેડે દૂર રથક્રીડા (રથમાં બેસીને ફરવા) આવશે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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