Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 797
________________ प्रमेन्द्रका टीका श० १५ ३० १ सू० १९ रेवतीदानसमीक्षा ७८३ " ही, काकेभ्यो दधिरक्ष्यताम्, कलिङ्गो युध्यते सः पलायितः इत्यादि, तात्पर्यानुपपत्तिच लक्षणावीजम् प्रकृतेऽपि प्राप्तस्य वीतरागस्य प्रभोर्महावीरस्य कूष्माण्डकफले तात्पर्यनुपपच्या लक्षणा संभवति, तथा च मुख्यार्थस्य बाधात् लक्षणया कपोतकशरीरशन्दस्य कूष्माण्डकफलमर्थः सिध्यति, वस्तुतस्तु भगवतो महावीरस्य केवलित्वात् वीतरागत्वात्, अहिंसाव्रतपालकत्वात् आप्तत्वाच तद् वाक्यस्य पूर्वोक्तस्य कूष्माण्डकफले एव प्रकरणादिना शक्तिग्रहः सिद्धः, तथा चोक्तम् " 1 9 "शक्तिग्रहं व्याकरणोपमान - कोषाप्तवाक्याद् व्यवहारतश्च । वाक्यस्य शेषाद वितेर्वदन्ति सानिध्यतः सिद्धपदस्य वृद्धाः' इति, एतेन कचित् कोशे कपोतशब्दस्य कूष्माण्डाऽर्थो न प्रसिद्ध इति परास्तम्, वैद्यककोषे ताम्' 'कलिङ्गो युध्यते स पलायितः' इत्यादि लक्षणा का बीज तात्पर्य की अनुपपत्ति होती है । प्रकृत में भी प्राप्तवीतरागप्रभु महावीर के तात्पर्य की अनुपपत्ति से कपोतशरीर शब्द की रक्षणा कूष्माण्ड़फलमें होती है । तथा च-मुख्यार्थ की बाधा से लक्षणा द्वारा कपोतशरीर शब्द का अर्थ कूष्माण्डक फल है ऐसा सिद्ध होता है। वास्तव में तो भगवान् महावीर के केवली होने से, वीतराग होने से, अहिंसाव्रतपालक होने से, और आप्त होने से पूर्वोक्त उनके वाक्यका कूष्माण्डकफल में ही प्रकरण आदि को लेकर शक्तिग्रह सिद्ध है । सो ही कहा है - 'शक्तिग्रहं व्याकरणोपमान' इत्यादि पूर्वोक्त कथन से अब यह बात सिद्ध हो जाती है कि जो कोई ऐसा कहते हैं कि कोश में कहीं पर शन्ति, " " यष्टीः प्रवेशय ", "गौर्वाहीकः, काकेभ्यो दधि, रक्ष्यताम् ” “कलिङ्गो युध्यते स पलायितः" इत्याहि सक्षणुना जीन तात्पर्यनी अनुपपत्ति थाय છે. પ્રસ્તુત વિષયમાં પણ પ્રાપ્ત વીતરાગ પ્રભુ મહાવીરના તાપની અનુપપત્તિની અપેક્ષાએ કપેાતશરીર શબ્દની લક્ષણા કૃષ્માંડક ફળમાં હાય છે. વળી સુખ્યાની ખાધાને લીધે લક્ષણા દ્વારા કપાતશરીર શબ્દના અર્થ કૂષ્માંડક ફળ છે, એવું સિદ્ધ થાય છે. વાસ્તવિક રીતે વિચાર કરવામાં આવે, તેા ભગવાન મહાવીર કેવલી હાવાથી, વીતરાગી હાવાથી, અહિં‘સાતપાલક હાવાથી, અને આસરૂપ હોવાથી પૂર્વાંકત તેમના વાકયના " पोतशरीर " પદ્મના અથ કૂષ્માંડક ફળ જ સિદ્ધ થાય છે. એજ " शक्तिग्रहं व्याकरणोपमान " त्याहि उथन द्वारा व्यस्त थाय छे. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧ આ પૂકિત કથનથી હવે એ વાત સિદ્ધ થઈ જાય છે કે “જે કાઈ એવું કહે છે કે ફાષમાં કાઈ પણુ જગ્યાએ કપેાતશબ્દના અર્થ કૂષ્માંડક

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