Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 828
________________ ८१४ भगवतीसूत्रे अम्हं महापउमस्स रन्नो दोच्चंपि नामधेनं देवसेणे, देवसेणे, तए णं तस्स महापउमस्त रण्गो दोच्चेऽवि नामधेज्जे भविस्तइ, देवसेणे ति, देवसेणे ति। तए णं तस्स देवसेणस्स रणो अन्नया कयाइ सए संखतलविमलसन्निगासे चउइंते हस्थिरयणे समुप्पजिस्सइ, तए णं से देवलेणं राया तं सेयं संखतलविमलसन्निगासं चउदंतं हत्थिरयणं दूरूढे समाणे सयदुवारं नयरं मज्झं मझेणं अभिक्खणं अभिक्खणं अति जाहिइ, निजाहिइय । तए णं सयदुवारे नयरे बहवे राईसर जाव पभिईओ अन्नमन्नं सदावति, सदाविता, वएहितिजम्हा णं देवाणुप्पिया! अम्हं देवलेणस्त रन्नो सेए संखतलसन्निगासे चउदंते हस्थिरपणे समुप्पन्ने, तं होउगं देवाणुप्पिया! अम्हं देवसेणस्ल रन्नो तच्चे वि नामधेनं विमलवाहणे, विमलवाहणे। तए णं तस्स देवसेणस्स रन्नो तच्चे वि नामधेने विमलवाहणे राया अन्नया कयाइ समहिं निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवजिहिइ, अप्पेगइए आउसेहिइ, अप्पेगइए निच्छोडेहिइ, अप्येगइए निब्भच्छेहिइ, अप्पेगइए बंधेहिह, अप्पेगइए णिरुंभेहिइ, अप्पेगइयाणं छविच्छेदं करेहिइ, अप्पेगइए पमारेहिइ, अप्पेगइए उद्दवेहिइ, अप्पेगइयाणं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं आच्छिदिहिइ, विच्छिदिहिइ, भिंदिहिइ, अवहरिहिइ, अप्पेगइयाणं भत्तपाणं बोच्छिदि શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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