Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 838
________________ ८२४ भगवतीसूत्रे नाए पचायाहिइ' हे गौतम ! इहैव-अस्मिन्नेव जम्बूद्वीपे द्वीपे, भारते वर्षे, विन्ध्यगिरिपादम्ले-विन्ध्याचलोपत्यकायाम् , पुण्ड्रेषु जनपदेषु-देशेषु शतद्वारे नाम्नि नगरे, संमूर्तः राज्ञो भद्राया भार्यायाः कुक्षौ-उदरे, पुत्रतया प्रत्यायास्थति-'से णं तत्थ नवण्हं माताणं बहुपडिपुण्णाणं जाव वीइक्कंताणं जाव सुरूवे दारए पयाहिई' स खलु भद्रानाम भार्या, तत्र-शतद्वारे नगरे नवानां मासानां बहुपतिपूर्णानाम् यावत् सार्द्ध सप्तदिनानां व्यतिक्रान्तानाम्-व्यतीतानन्तरमित्यर्थः यावत्-सुकुमारपाणिपादम् , लक्षणव्यञ्जनगुणोपेतम् , सुरूपम्-परमसुन्दरम् , दारक-बालकम् , प्रजनयिष्यते, 'जं रयणि च णं से दारए जाइहिद, तं स्थणि च णं सयदुवारे नयरे सभित्तरबाहिरिए भारगमोय, कुंभग्गसोय, पउमवासे य रयगासे य वासे वासिहिइ' यस्यां रजन्यां च खलु स दारको-बालको जनिष्यते नयरे समुत्तिस्त रनो भदाए भारियाए कुच्छिसि पुत्तसाए पच्चायाहिई' हे गौतम ! इसी जंबूद्वीप नाम के द्वीप में भरतवर्ष में विंध्यगिरि के पादमूल में विंध्याचल के नीचे की समतल भूमि में-पुड्रदेश में शतद्वार नामके नगर में संमूर्ति राजा को भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न होगा । 'से णं तस्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव वीइकताण जाव सुरुवे दारए पाहिह' वह भद्रा भार्या शतद्वार नगर में नौ मास और ७॥ दिन जब अच्छी प्रकार से व्यतीत हो जायेंगे-तब उसके बाद अनन्तर समय में यावत् सुकुमार कर चरणवाले, लक्षण व्यंजनगुणों से युक्त, अच्छेरूपवाले-परमसुन्दर ऐसे बालक को जन्म देगी। 'जं रथगि च गं से दारए जाइहि, तं रणिं च णं सय. दुवारे नवरे साभितरबाहिरिए भारगगसोय, कुभग्गसोय पउमवासे य रयणवासे य वासे वासिाहिइ' जिस रात्रि में उस बालक को वह जन्म जिसि पत्तत्ताए पञ्चायाहिइ" गोतम ! 241 यूद्वीप नामाना सरत भां વિણગિરિના પાદમૂળમાં (તળેટીમાં)-વેિ ધ્યાચળની નીચેની સમતલભૂમિમાં પંડ્રદેશમાં શતદ્વાર નામના નગરમાં સંમૂર્તાિ નામના રાજાની ભદ્રા નામની २साना , a पुत्र ३ ५ थशे. “ से ण तत्थ नवण्हं मात्राण बहुपडिपुण्णाणं जाव वीइकंताणं जात्र सुरूवे दारए पयाहिइ" ते मद्रासन ઉદરમાં પૂરા નવ માસ અને છ દિવસ રહ્યા બાદ, તે સુકુમાર કરચરણવાળા, શુભ લક્ષણે અને વ્યંજનથી યુકત, પરમસુંદર પુત્ર રૂપે જન્મ લેશે. “ रयणिं च ण से दारए जाइहिइ, तं रयणि च णं सयदुवारे नयरे साभितर बाहिरिए भारग्गसोय, कुंभग्गस्रोय पउमथासे य रयणवासे य वासे वासिदिइ" શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906