Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 846
________________ ८३२ भगवतीसूत्रे लुण्टयिष्यति, विच्छेत्स्यति-विशेषेण लुण्टशिष्यति, भेत्स्यति-पात्रादिकं विदारयिष्यति, अपहरिष्यति-चोरयिष्यति, अप्ये केवा भक्तपानं व्युच्छेत्स्यति-निरोधयिष्यति। 'अप्पाइए णिन्नवरे करेडिइ, अप्पेगइए मिचिसए करेहि।,' अप्येकान् निर्ग्रन्थान्-नगराद निष्काशितान् करिष्याते, अप्येकान् निषिपयान-विषयावदेशात् निष्काशितान् करिष्यति 'तए णं सय दुबारे नपरे बह्ये राईसर जाव वइहिंति'-ततः खलु शतद्वारे नगरे बहवो राजेश्वर यावत् तलबर सार्थवाहप्रभृतयो वदिष्यन्ति-'एवं खलु देवाणुपिया! विमलवाहणे राया समणेहिं निग्गंथेहि मिच्छ विप्पडि बन्ने -अप्पेगइए आउस्सइ जाव निधिसए करेई' भो देवानुमियाः! एवं खलु-पूक्तिरीत्या विमल बाहनो राजा श्रमणैः निग्रन्थैः सह मिथ्यात्वम्मिथ्याभावं विप्रतिपन्ना-सह विरुद्वाचरणं कर्तुमुवतः-तथाहि-अध्येकान् के वस्त्र को पात्र को, कम्बल को और पादप्रौछन को लुटेगा, विशेष रूप से उन्हें चुरावेगा, उनके पात्रादिकों का विदारण करेगा और इधर उधर चुराकर उन्हें रख देगा। लथा कितनेक श्रमणजनों के भक्तपान का वह निरोध करना । 'अप्पेगइए निन्नयरे करीहि कितनेक श्रमणजनों को वह नगर से बाहर निकाल देगा, । 'अप्पेगइए निविसए करेहिइ' और कितनेक श्रमणजनों को वह देश से भी बाहर कर देगा। 'तए णं सयदुवारे नयरे बहवे राईसर जाव वाहिति' तब उस शतद्वार नगर में अनेक राजेश्वर यावत् तलवर सार्थवाह आदिजन कहेंगे'एवं खलु देवाणुपिया! विमल पाहणे राया समणे िनिग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवन्ने' हे देवानुप्रियो । विमलवाहन राजा श्रमण निर्ग्रन्थों के साथ मिथ्याभाव को प्राप्त हुआ है-अर्थात् उनके साथ विरुद्धाचरण पात्रने, मगने, भने ५४ोनन (५७॥ यूछानु साधन) यूट, विशेष રૂપે તેની ચોરી કરાવશે, તેમના પાત્રાદિકને ફાડી નાખશે, તથા તેની ચેરી કરાવીને તે વસ્તુઓને ગુપ્ત સ્થાનમાં રખાવશે, તથા કેટલાક શ્રમણનિને माहारा पासवान। पय ते निराध २0. 'आपेगइए निन्नयरे करीहिह" सा मानते नगरनी पडा२ ५y isी ४ढरी, 'अपेगइए निव्विसए करेहिह" मन ear: श्रमनियाने ते शमा२ ५५ ढिी भूरी "तए णं सयदुवारे नयरे बहवे राईघर जाव वइहिति" त्यारे शतदार नाना भने રાજેશ્વર, તલવર આદિ સાર્થવાહ પર્વતના લેકે એક બીજાને આ પ્રમાણે डेरी-एवं खलु देवाणुप्पिया! विमलवाहणे राया समणेहि मिच्छं विष्पडिवन्ने" હે દેવાનુપ્રિયે ! વિમલવાહન રાજા શ્રમનિJથે પ્રત્યે મિથ્યાભાર ધારણ કરી રહ્યો છે, એટલે કે તે તેમની સાથે વિરુદ્ધાચરણ કરવાને કટિબદ્ધ થઈ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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