Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 847
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० २१ गोशालकगतिवर्णनम् ८३३ निग्रन्थान्-आक्रोशति-निन्दति, यावत्-अप्येकान् निर्ग्रन्थान् अपहसति, अप्येकान् निश्छोटयति, अप्येकान् निर्भर्सयति, अप्ये कान बध्नाति, अप्येकान् निरुणद्धि, अप्ये केषां छविच्छेदं करोति, अप्येकान् प्रमारयति, अप्येकान् उपद्रवति, अप्येकेषां वस्त्रं प्रतिग्रहं कम्बलम् , पादपोछनम् आच्छित्ति, विच्छिन्नति भिनत्ति, अपहरति, अप्ये केषाम् भक्तपानं व्युच्छिनत्ति, अप्येकान् निगरान् करोति अप्येकान् निर्विवान् करोति, 'तं नो खलु देवाणुपिया ! एयं अम्हं सेयं, नो खलु एयं विमलवाहणस्स रन्नो सेयं, नो खलु एयं रज्जरस वा, रहस्स वा, बलस्स वा, वाहणस्त वा, पुरस वा, अंतेउरस्स वा, जणवयस्स वा सेयं भो देगनुपियाः ! तत् खलु नो एतत्-निग्रन्थ विरु द्वावरणम् अस्माकं श्रेय:करने के लिये कटिबद्ध हो गया है सो वह कितनेक निग्रन्थों की निंदा करता है, यावत, कितनेक निर्ग्रन्धों की वह हँसी करता है, कितनेक निग्रन्थों को वह विकारता है, कितनेक निर्ग्रन्थों की वह भसना करता है, कितनेक निर्ग्रन्थों को वह बांधता है कितनेक निग्रन्थों को वह इधर उपर फिरने से रोकता है, कितनेक निर्ग्रन्थों की आकृति का उसने भंग कर दिया है, कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों को को उसने मार दिया है, किननेक श्रमण निर्ग्रन्थों के साथ उसने उप. द्रव किया है, इत्यादि पूर्वोक्त उसका श्रमण निर्ग्रन्थों के प्रति हुआ आचरण यहां सब कहना चाहिये। यावत् कितनेक श्रमण निर्ग्रन्थों को वह देश से बाहर कर रहा है ? 'तं नो खलु देवाणुप्पिया! एवं अम्हं सेयं, नो खलु एयं विमलवाहणस्त रन्नो सेयं, नो खलु एयं रजस्स था, रहस्स वा, बलस्त वा, वाहणस्त वा, पुरस्स वा, अते उरस्स वा जणवयस्त पा सेयं' सो यह उसकी श्रमण निर्ग्रन्थों के प्रति हो रही ગ છે. તે કેટલાક નિગ્રથની નિંદા કરે છે, કેટલાકને ઉપહાસ रे छ, १४ २ घिरे छ, टमनी निसा रे छ, કેટલાકને બાંધે છે, કેટલાકના અવરજવરને નિરોધ કરે છે, કેટલાક શ્રમણ નિગ્રંથાના અંગેનું તેણે છેદન કર્યું છે, કેટલાકને તેણે માર પણ માર્યો છે, કેટલાક શ્રમણ નિગ્રંથ પર જુદા જુદા ઉપદ્ર કર્યા છે, ઈત્યાદિ પૂર્વોક્ત સમસ્ત વર્ણન અહી ગ્રહણ કરવું જોઈએ. કેટલાક શ્રમણ નિર્ગથાને તેણે દેશની બહાર પણ હાંકી કાઢયા છે,” આ કથન પર્યન્તનું તેના સાધુએ સાથેના દુવ્યહવારનું કથન કરવું જોઈએ, ___ " नो खलु देवाणु दिग्या ! एयं अम्ह सेय, नो खलु एयं विमलवाहणस्त्र रन्नो सेय', नो खलु एयं रज्जरस वा, रस्स वा, बलस्स वा, वाहणस्स वा पुरस्म वा, अते उरस्स वा, जणवयस्स वा सेय" alतनी मा श्रभर नि । भ० १०५ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906