Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे प्रकारेण वदिष्यन्ति-'जम्हा णं देवाणुपिया ! अम्हं देवसेणस्स रण्गो सेए संख तलसंनिगासे चउदंते हत्यिरयणे सप्पन्ने' भो देवानुपियाः ? यस्मात्कारणात् खलु अस्माकम् देवसेनस्य राज्ञः श्वेतः शङ्ख तलसन्निकाशः चतुईन्तं हस्तिरत्न समुत्पन्नम् , 'तं होउणं देवाणुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्स रणो तच्चे वि नामधेज्जे विमलबाहणे विमलवाहणे ति' भो देवानुप्रियाः ! तत्-तस्मात्कार. मात् भवतु खलु अस्माकं देवसेनस्य राज्ञ स्तृतीयमपि नामधेयं विमलवाहन इति, विमलवाहन इति, 'तए णं तस्स देवसेगस्स रण्णो तच्चे वि नामधेज्जे विमलवाहणे त्ति' ततः खलु तस्य देवसेनस्य राज्ञ स्तृतीयमपि नामधेयं विमल पहन इतिसंजातम् , 'तए णं से विमलपाहणे राया अनया कयाइ समणेहि निग्गंथेहि भिच्छं विपडिवज्निहिई-ततः खलु स विमलवाहनो राजा अन्यदा कदाचित् श्रमगैः निग्रन्थैः सह मिथ्यात्वं विप्रतिपन्ना-'अप्पेगइए आउसेहिइ, अप्पेगइए -'जम्हा णं देवाणुपिया! अम्हं देवसेणस्त रणो सेए संखतलसन्निगासे च उद्दते हस्थिरयणे सनुप्पन्ने' हे देवानुप्रियो ! हमारे राजा देवसेन के यहां शुभ्र एवं शंख के मध्यभाग जैसी कान्तिवाला हस्तिरत्न उत्पन्न हुआ है, 'तं होउणं देवाणुपिया! अम्हं देवसेणस्स रणो तच्चे विनामधेज्जे विमलवाहणे २' अतः हे देवानुप्रियो ! हमारे देवसेन राजा का तीसरा नाम विमलवाहन २ ऐसा भी होना चाहिये। 'तए णं तस्स देवसेणस्स रगो तचे विनामधेजे विमलवाहणे त्ति' इसके बाद उस देवसेन राजा का तीसरा नाम विमलवाहन होगा। 'तए णं से विमलवाहणे राया अनया कपाइ समणेहिं निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिव. जिजहिई' तब वह विमलवाहन राजा किसी एक समय में श्रमण निर्ग्रन्थों के साथ मिथ्यात्वभाव को धारण करेगा-मो 'अप्पेगइए माप्रमाणे वियार ४२N 'जम्हा ण देवाणुप्पिया ! अम्हं देवसेणस्स रण्णो सेए संखतलमन्निगासे चउदंते हस्थिरयणे समुपन्ने" पानुप्रिय! १५। रात દેવસેનને ત્યાં શુભ્ર (ધત) વર્ણને, શંખના મદભાગના જેવી કાંતિવાળો, ચાર
शोधणो श्रेष्ठ हाथी उत्पन्न ये छे. 'तं होउ ण देवाणुप्पिया ! अम्है देवसेणस्ल रणो तच्चे वि नामधेज्जे विमलवाहणे २" तथा देवानुप्रियो । भा५। षसेन रानु त्री नाम 'मिसा' २५ नये. 'तए णं तस्स देवसेणस्ल रगो तच्चे वि नाप्रधेग्जे विमलवाहणे ति" त्यास्था त देवसेन २सानु श्री नाम विभान रामपामा १. "तए णं से विमलवाहणे राया अन्नया कयाइ समणेहिं निग्गंथेहि मिच्छं विप्पडिवजिहिइ" त्या२ मा ।। એક સમયે તે વિમલવાહન રાજા શ્રમણુનિ પ્રત્યે મિથ્યાવભાવ ધારણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧
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