Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 824
________________ ८१० भगवतीसुत्रे J भगवानाह - ' एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी सुनक्खत्ते नामं अणगारे पगree जाव विणी' हे गौतम! एवं खलु - पूर्वोक्तरीत्या, निश्वयेन मम अन्तेवासी सुनक्षत्रो नाम अनगारः प्रकृतिभद्रको यावद् विनीतश्चासीत्, 'सेणं तथा गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं तवेणं तेषणं परितादिए समाणे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छ' स खलु सुनक्षत्रोऽगार स्तदा तस्मिन् काले गाशाळेन मङ्खलिपुत्रेण तपसा - तपः प्रभवेण तेजसा - तेजोलेश्यथा, परितापितः सन् यत्रेत्र मम अन्तिकम् - सामीप्यमासीत्, तत्रैत्र उपागच्छति, 'उवागच्छिता बंदर, नमंसर, वंदित्ता, नमंसित्ता, सयमेव पंचमहव्ययाई आरुहेई' उपागत्य, वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्त्विा स्वयमेव - आत्मनैव पञ्च महावानि पूर्वोक्तस्वरूपाणि आरभते, 'आरुहेना समाय समणी ओय खामेइ' आरभ्य, श्रमणांश्च साधून्, श्रमणीश्व - साध्वीः हुए हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'एवं खलु गोयमा ! ममं अंतेवासी सुनक्खन्ते नामं अणगारे पगड़भद्दर जाव विणीए' हे गौतम! जो मेरे अंतेवासी सुनक्षत्र अनगार थे कि जो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे । 'सेणं तथा गोसाले मंखलितेणं तवेणं तेएर्ण परितायिए समाणे जेणैव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ' वे मंखलिपुत्र गोशाल के द्वारा निक्षिप्त तप से प्राप्त तेजोलेश्या से परितापित होते हुए मेरे पास आये थे । 'उवागच्छित्ता बंदर, नसह, वंदित्ता नमसित्ता सयमेव पंचमह aaurt' आहे' वहां मेरे पास आ करके उन्होंने मुझे बन्दना एवं नमस्कार किया था - वन्दना नमस्कार करने के बाद पांच महाव्रतों का स्वतः ही उच्चारण किया था । 'आरुहेसा समणा य समणीओ य खामेइ' उच्चारण करके साधु और साध्वीजनों के लिये क्षमा दी थी - 66 से उडे छे - " एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी सुनक्खत्ते नाम अणगारे पगइree जाव विणीए " हे गौतम! भार અન્તવાસી સુનક્ષત્ર અણુગાર કે જેએ પ્રકૃતિભદ્રથી લઇને વિનીત પર્યંતના ગુશ્ાથી યુકત હતા, तया गोसा लेणं मखलिपुत्त्रेण तवेण तेपण परिताविए समाणे जेणेव मम अतिए तेणेव उवागच्छइ " तेथे। भभसिपुत्र गोशाल वडे छोडायेसी तथेજન્ય તેજોવેશ્યા વડે પરિતાપિત થઈને મારી પાસે આવ્યા હતા. "C उवागच्छिता वंदइ, णमंबइ, वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महव्वयाई आरुइ મારી પાસે આવીને તેમડ઼ે મને વદણા નમસ્કાર કર્યા હતાં વંદણા નમસ્કાર श्रीने तेमले भते ४ पांच महाव्रतानं उभ्यारथ अयु तु . " आरुहेत्ता समणा य समणीओ य खामेइ " त्यार बाट तेभाये साधु भने साध्वीयाने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧ "

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