Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे लेश्यया भस्मराशीकृतः-दग्धः सन् ऊर्ध्वम्-ऊर्यलोके चन्दमः सूर्य यावत्-ब्रह्मलान्तकमहाशुक्रान् कल्पान् व्यतिव्रज्य-अतिक्रम्य, सहस्रारे कल्पे-अष्टमे देवलोके देवतया उपपन्नः, 'तत्य णं अत्थेगइयाण देवाणं अद्वारससागरोवमाई ठिई पन्नता' तत्र खल्लु-सहस्रारे कल्पे, अरत्येकेषां देवानाम् अष्टादशसागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'तत्थ णं सवाणुभूइस्स वि, देवस्स अट्ठारससागरोवमाई ठिई पनत्ता' तत्र खलु सहस्रारे कल्पे, सर्वानुभूतेरपि देवस्य-देवत्वेन उत्पन्नस्य, अष्टादश सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता, 'से णं सव्वाणुभूई देवे ताओ देवलोगायो आउक्वएणं, भवक वएणं, ठिइक्वएणं जाव महाविदेहे वासे सिज्यिहिइ जाव अंत करेहिइ स खलु सर्वानुभूतिर्देवस्तस्मात्-पूर्वोक्तात् , देवलोकात्सहस्रारात्, आयुःक्षयेण, भगक्षयेण, स्थितिक्षयेण, यावत् मत्युच्य, अनन्तरम् , हुए उवलोक में चन्द्रमा और सूर्य को उल्लंघन करके, तथा उनसे भी ऊपर ब्रह्म, लान्तक एवं महाशुक्रकल्प को भी उल्लंघन करके आठवें सहस्रार नामके कल्प में देवलोक में-देव की पर्याय से उत्पन्न हुए हैं, 'तस्थ णं अत्यंगझ्याणं देवाणं अट्ठारससागरोवमाईठिई पन्नत्ता' वहां पर कितनेक देवों की स्थिति १८ सागरोपम तक की कही गई है-'सो 'तत्थ णं सवाणुभूइस्स वि देवस्स अट्ठारससागरोवमाई ठिई पन्नत्ता' वहां सर्वानुभूति देव की भी १८, सागरोपम की स्थिति हुई। ‘से णं सव्वाणुभूई देवे तामो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं, ठिईक्ख एणं, जाव महाविदेहेवासे सिज्झिहिई' जाव अंतं करेहिइ' वे सर्वानुभूतिदेव उस पूर्वोक्त देवलोक से-सहस्रार कल्प से आयु के લની તપિજન્ય તેજલેશ્યા વડે ભસ્મીભૂત થઈને, ઉર્વલેકમાં ચન્દ્રમા અને સૂર્યનું ઉલ્લંઘન (પાર) કરીને, તથા તેમનાં કરતાં પણ ઉપર આવેલાં બ્રાલેક, લાન્તક અને મહાશુક્ર કપનું' પણ ઉ૯લંઘન કરીને, આઠમાં સહસ્ત્રાર નામના ક૫માં (દેવલોકમાં) દેવની પર્યાયે ઉત્પન્ન થઈ ગયા છે. " तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं अद्वारससागरोवमाइं ठिई पण्णता" वसना sears वानी स्थिति १८ सागरापमनी ही छे. " तत्थ णं सव्वाणुभूइस्स वि देवस्स अट्ठारस्ससागरोवमाइं ठिई पन्नता" या सर्वानुभूति पनी स्थिति ५५ १८ सागरेश५मनी ४ समवी. “से गं सव्वाणुभूई देवे ताओ देवलो. गाओ आउखएणं भवक्खएणं, ठिइक्खएणं जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं करेहिइ" सानुभूति व ते ससार ४६पना मायुनो क्षय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧