Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 781
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १९ रेवतीदानसमीक्षा ७६७ शतके पश्चम देशके भक्तपानं प्रतिदर्शितं तथैव प्रतिदर्शयति, पडिदंसेचा समणस्स ries महावीरस्स पार्णिसि तं सव्वं समं निस्सिरइ' प्रतिदर्श्य श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य पाणौ तत् सर्वं समं सदैव निःसृजति - विदधाति, 'तए णं समणे ari महावीरे अमुच्छिए जाव अणज्झोववन्ने बिलमित्र पन्नगभूपणं अप्पाणेणं तमाहारं सरीरको गंसि पक्खिव' ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीरः अमूच्छितः - आहारमूर्च्छारहितः यावत् - अनध्युपपन्नः - गृद्धिभाववर्जितः सन् बिलेइव - रन्ध्रे इव पत्रभूतेन सर्पसदृशेन आत्मना तमाहारं शरीरकोष्ठ के प्रक्षिपति, 'तणं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स से विउले रोगायंके खिप्पामेत्र उवसमं पत्ते' ततः खलु श्रमणस्य भगवतो महावी 9 दिखलाने का कथन द्वितीय शतक के पंचम उद्देशक में किया गया है । 'पडिदसेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स पर्णिसि तं सव्वं सम्म निस्सिरइ' भक्तपान दिखला करके फिर वह सब भक्तपान श्रमण भगवान् महावीर के हाथ पर एक ही साथ उन्होंने रख दिया । 'तए णं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिए जाव अणज्झोववन्ने बिलमिव पन्नगभूषणं अप्पाणणं तमाहार सरीरकोदुगंसि पक्खिव' तब श्रमण भगवान् महावीरने अमूर्किछत आहार की मूच्छी से रहितभाव से एवं गृद्धिवर्जित भाव से बिल में सर्प जैसे प्रवेश करता है - उस प्रकार होकर उस आहार को शरीररूप कोष्ठक में डाल लिया । 'तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स तमाहारं आहारियस्स समाणस्स विउले रोगायंके खिप्पामेव उवसमं पत्ते' श्रमण भगवान् महावीर का प्रचुर શતકમાં પાંચમાં ઉદ્દેશકમાં આ વિષયને અનુલક્ષીને જેવુ કથન-ગૌતમ સ્વામી આહાર કેવી રીતે ખતાવે છે તે કથન-કરવામાં આવ્યુ છે, એવું જ अथन यहीं पशु ४२ ले " पडिदसेत्ता भ्रमणस्स भगवओ महावीरस्स पार्णिसि तं सव्व सम निस्सिरइ " ભક્તપાન ખતાવ્યા બાદ, તેમણે તે સમસ્ત ભક્તપાન (આહાર) એક સાથે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના હાથમાં भूमी हीधे.. तर णं समणे भगव' महावीरे आमुच्छिए जाव अणज्झोववन्ने बिलमिव पन्नगभूषणं तमाहारं सरीर कोट्ठगंसि पक्खिवइ " त्यारे श्रम लगવાન મહાવીરે અસૂચ્છિત ભાવથી-આસક્તિરહિત ભાવથી, અને વૃદ્ધિરહિત ભાવથી, જેવી રીતે સર્પ દરમાં પ્રવેશ કરે છે, એજ પ્રમાણે તે આહારને शरीर ३५ है|हामां नाभी हीधे "तए णं समणरस भगवओ महावीरस्स तमाहारं आह रियर समाणस्स से विउले रोगायंते खिप्पामेव उवसम पत्ते " આ 66 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧

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