Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे पडिलेहेई' वन्दित्वा, नमस्थित्वा अत्वरित-वरावर्जितम्, अचपलम् चाश्चल्यरहितम्, असंभ्रान्तम्-आवेगवर्जितं च यथास्यात् तथा, मुखपोतिकाम्-सदोरकमुखवस्त्रि. काम्, प्रतिलिखति, 'पडिलेहित्ता जहा गोयमसामी जाब जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई' मुखयोतिकाम् सदोरकमुखवत्रिकाम्, पतिलिख्य, यथा गौतमस्वामी यावत् भगवतः समीपे आगतस्तथैव-सिंहोऽनगारः यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीर आसीत्, तत्रैव उपागच्छति, “उवागच्छित्ता समर्ण भगवं महावीरं वंदह, नमसइ,' उपागत्य श्रमणं भगवन्तं महावीर कन्दते नमस्यति' 'वंदित्ता नमंसित्ता समणस्स भगवभो महावीरस्स अंतियाओ सालकोट्टयाभो चेइ. याभो पडिनिक्खमई' वन्दित्वा नमस्यित्वा श्रमणस्य भगरती महावीरस्य अन्तिकात्-समीपात् शालकोष्ठकात् चैथात् प्रतिनिष्क्रामति-निर्गच्छति ‘पडिनिरियमबवलमसंभंतं मुहमोत्तियं पडिलेहेह' वन्दना नमस्कार करके फिर उन्होंने स्वरा से रहित होकर, चपलता रहित होकर और असंभ्रान्तआवेगरहित होकर सदोकमुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना की 'पडिलेहित्ता जहा गोयमसामी जाव जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छई' सदोरक मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके फिर वे गौतमस्वामी के जैसा यावत् भगवान के पास आये। 'उवागच्छिन्ता समणं भगवं महा. वीरं वंदइ, नमसइ' वहां आकर के उन्होंने पुनः श्रमण भगवान महा. वीर को वन्दना की और नमस्कार किया 'वंदित्ता नमसित्तासमणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ सालकोट्टयाभो चेझ्याओ पडिनि. क्खमई' वन्दना नमस्कार करके फिर वे महावीर के पास से और उस शालकोष्ठक नामचैत्य से निकले। 'पडिनिक्खमित्ता अतुरिय जाय नमसित्ता अतुरियमच उमसंभंतं मुहह्मोत्तियं पडिलेहेइ" क्यानभ७२ शन, તેમણે ત્વરા અને ચાલતાથી રહિત અને આવેગરહિત ભાવપૂર્વક સરક पपत्तीनी प्रतिमन री. “पडिलेहित्ता जहा गोयमसामी जाव जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छइ" भुडपत्तीनी प्रतिमन शन ૌતમ સ્વામીની જેમ (પૂર્વેત વર્ણન અનુસાર) મહાવીર ભગવાનની પાસે मा०या. “उवागच्छिता समण भगव महावीरं वदा, नमंसइ" त्या मावीन તેમણે ફરી શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વધણ કરી અને નમસ્કાર કર્યા. "वदित्ता, नमंसित्ता समस्त भगवओ महाविरस्स अंतियाओ सालकोट्याओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ” ४ नम२४२ ४रीने तमे। महावीर माननी पासेयो भने त शास 108 येत्यमाथी मार नीsvil. " पडिनिक्खमित्ता
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧