Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 775
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १९ रेवतीदानसमीक्षा ७६१ क्खमित्ता अतुरिय जाय जेणेव में ढियगामे नयरे तणेव उवागच्छई' प्रतिनिष्क्रम्यनिर्गत्य, अत्वरितं यावत् अचपलम् असंभ्रान्तं यथास्यात्तथा, यत्रैव मेण्डिकग्राम नाम नगरमासीत्, तत्रैव उपागच्छति, 'उवागच्छित्ता मेंढियगामं नयरं मझमज्ज्ञेणं जेणेव रेवईए गाहावइणीए गिहे, तेणेव उवागच्छइ' उपागत्य, मेण्टिकग्राम नगरमाश्रित्य मध्यमध्येन मध्य मागेन यत्रैव रेवत्याः गाथापल्याः गृहमासीव, तत्रैव उपागच्छति, "उवामच्छित्ता रेवईए गिहं अणुपविटे' उपागत्य, रेवत्याः गाथापत्न्याः गृहम् अनुपविष्टः 'तए ण सा रेवई गाहावइणी सीहं अणगारं एज्ज. माणं पासई' ततः खलु सा रेवती गाथापत्नी सिंहम् अणगारम् आयन्तम्आगच्छन्तम्, पश्यति 'पासित्ता हतुवा खियामेव आसणाओ अब्भु. तुइ' दृष्ट्वा इष्टतुष्टा सती क्षिप्रमेव आसनात् अभ्युत्तिष्ठति' 'अन्भुद्वित्ता सीई अगगार सत्तट्ठपयाई अणुगच्छई' अभ्युत्थाय, सिंहम् अनगारम् , सप्ताष्टपदानि, जेणेव मेंढियगामे.नयरे तेणेव उवागच्छह' निकल कर स्वरावर्जित एवं वेगवर्जित गति से चलकर जहां मेंढिक ग्राम नगर था वहां पर आये । 'उवाच्छित्ता मेंढियगामं नयरं मज्झ मज्झेणं जेणेव रेवईए गाहावइणीए गिहे तेणेव उवागच्छ' वहां आकर वे उस मेण्ढिकग्राम नगर के मध्यभाग से होकर जहां रेवती गावापत्नी का घर था वहां आये। 'उवागच्छित्ता रेवईए गाहावणीए गिहं अणुप्पविढे' वहाँ आकरके वे रेवती गाथापत्नी के घर में प्रविष्ट हुए 'तएणं सा रेवई गाहावइणी सीहं अणगारं एजमाणं पासइ' प्रविष्ट होकर आते हुए सिंह अनगार को रेवती गाथापत्नी ने देखा 'पासित्ता हतुट्ठा खिप्पामेव आसणाओ अन्भुटे' सो देखकर वह इष्टतुष्ट होती हुई बहुत ही जल्दी से अपने आसन-स्थान से उठी । 'अन्भुद्वित्ता सीहं अगगारं सत्तकृपयाई अणुअतुरिय जाव जेणेव में ढियगामे नयरे सेणेव उवागच्छइ" त्यांथी नीजीन વરારહિત, ચપલતારહિત અને વેગવતિ ગતિથી ચાલતા ચાલતા તેઓ भविश्याम नाम माया. “उवागच्छित्ता में ढियगाम नयरं मज्झ मज्झेणं जेणेव रेवईए गाहावइणीए गिहे तेणेव उवागच्छइ" ५छी मायाम नगरना મધ્યભાગમાં થઈને જયાં ગાથાપની રેવતીનું ઘર હતું, ત્યાં આવ્યા. " उवागच्छित्ता रेवईए गाहावइणीए गिह अणुप्पविद्वे" त्या ४ तेभर गाथापत्नी ३तीन घरमा प्रवेश प्रो. "तए णं सा रेवई गाहावइणी सीहं अणगारं एज्जमाण पासइ" त्यारे ते माथापत्नी रेवतीय पाताना घरमा प्रवेशात सि अमारने या. “पारित्ता हतुठा खिप्पामेव आसणाओ अब्भुटेइ" तेमन ने भूम ४ मन सताष पाभीन ते तुरत ४ भ० ९६ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871 872 873 874 875 876 877 878 879 880 881 882 883 884 885 886 887 888 889 890 891 892 893 894 895 896 897 898 899 900 901 902 903 904 905 906