Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 763
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १९ रेवतीदाननिरूपणम् ७४९ सरीरे दाहयकतिए छउमत्थे चेत्र कालं करेस्सइ' चातुर्वण्यम्-ब्राह्मणादिलोको करोति-व्याचष्टे, एवं खलु निश्चयेन श्रमणो भगवान महावीरो गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य तपमा-तपःप्रभावेण, तेजसा-तेजोलेश्यया अन्वाविष्टः-व्याप्तः सन् , अन्ते षण्णां मासानाम्-पानासानन्तरमित्यर्थः, पित्तज्वरपरिगतशरीरो दाहव्युत्क्रान्तिकः, छमस्थ एव-छद्मस्थावस्थायामेव, कालं करिष्यति-मरणधर्म प्राप्स्यति, 'तेणं कालेणं, तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सीहे नाम अणगारे पगइभदए जाब विणीए मालुपाकच्छगस्स अदरसामंते छटुं छटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उच्चाहा जाब विहरइ' तस्मिन् काले, नस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तेवासी-शिष्यः, सिंहो नाम अनगारः, प्रकृतिभद्रका-प्रकृत्या-स्वभावेन भद्रः-सरला, तथाविध एव प्रकृतिभद्रको यावत्मासाण वित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्रतीर छ उमस्थेचेव कालं करेससह यह सब प्रभाव मंखलिपुत्र गोशाल के द्वारा अपने शरीर में से काढकर प्रभुके ऊपर छोड़ी गई तप जन्य तेजोलेश्या का ही है-इस कारण वे श्रमण भगवान महावीर ६ मास के अंत में छद्मस्थावस्था में ही अवश्य मरण को प्राप्त हो जावेंगे, उनके समस्त शरीर भर में पित्तज्वर ने अपना पूर्ण प्रभाव जमा लिया हैं । दाह उनके शरीर को जुलसे डाल रही है। 'तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सीहे नामं अणगारे पगइभदए जाब विणीए मालुयाकच्छगस्स अदूरसामंते छठें छटेणं अणिक्खित्तेणं तवो कम्मेणं उड़बाहा जाव विहरई' जिप्त काल एवं जिस समय की यह बात है। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के सिंहनाम के अनगार थे ये प्रकृति से बडे चेव कालं करेस्सइ" भलिपुत्र गोशाले पताना शरीरमाथी २ तान्य તે જેલેશ્યા મહાવીર પ્રભુ પર છેડી છે, તેને જ આ પ્રભાવ છે. આ તેજેલેશ્યાના પ્રભાવથી શ્રમણ ભગવાન્ મહાવીર છ માસમાં જ છદ્મસ્થાવસ્થામાં જ મરણ પામશે. તેમના આખા શરીરમાં પિત્તજવરે પિતાને પૂર્ણ પ્રભાવ मान्य छे. तेवेश्या ४न्य हा तमना शरीरने जी रही छे. "तेणे कालेणं तेण' समएण समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सीहे नाम अणगारे पगइभदए जाव विणीए मालुयाकच्छगस्स अदूरसामंते छ? छट्रेणं अणि. क्खित्तेणं तवोक्कमेण उड्डू बाहा जाव विहरइ" २ . अने समयनी । વાત છે, તે કાળે અને તે સમયે શ્રમણ ભગવાનના સિંહ નામના એક અંતેવાસી માલુકાકચ્છ વનથી બહુ દૂર પણ નહીં અને બહુ સમીપ પણ નહીં એવા સ્થાને નિરંતર છ8ને પારણે છટ્ટેની તપસ્યા કરી રહ્યા હતા, શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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