Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 761
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीक श० १५ उ० १ सू० १९ रेवतीदाननिरूपणम् ७४७ जाव जेणेव में ढिय गामे नयरे जेणेव सालकोहए चेइए जाव परिसा पडिगया' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरः अन्यदा कदाचित् पूर्वानुपूर्वीम्-आनुपूर्येण, चरन् यावत्-ग्रामानुग्रामं द्रवन् सुखसुखेन विहरन् यत्रैव मेण्डिकग्रामं नगरम् आसीत् , यत्रैव शाल कोष्ठकं नाम चैत्यमासीत् , यावत्-तत्रैव समक्मृतः, ततो धर्मकथा श्रोतुं पर्षत् निर्गच्छति, धर्मों पदेशं श्रुत्वा पर्षत् प्रतिगता । 'तए गं समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायं के पाउब्भूए उज्जले जाय दुरहियासे पित्तज्जवरपरिगयसरीरे दाहवकंतिए यावि विहाइ' ततः खलु श्रमकिया गया है । 'तए णं समणे भगवं महावीरे अनया कयाई पुव्वाणुः पुद्वि चरमणे जाव जेणेव मेढियगामे नगरे जेणेव सालकोट्ठए चेहए जाव परिसा पडिगया' श्रमण भगवान महावीर किसी एक समय पूर्वानुपूर्वी से-सुख पूर्वक एक ग्राम से दूसरे ग्राम में विहार करते हुए जहां यह मेंढिकग्राम नगर था और उसमें भी जहां शालकोष्ठक चैत्य-उद्यान था-वहां पर आये भगवान को शालकोष्ठक चैत्य में आया हुआ जानकर परिषद् उनसे धर्मामृत का पान करने के लिये उनके पास आई । परिषद् की उस अपार मेदिनी को प्रभु ने धर्मामृत का पान कराया । धर्मामृत .का यथेष्ट पानकर वह जनमेदिनी विसजित हो गई। 'तए णं समणस्स भगवो महावीरस्त सरीरगंसि विपुले रोगायके पाउन्भूए उज्जले जाव दुरहियासे पित्तज्जरपरिंगयसरीरे दाहवकंतीए यावि विहरई' कुछ समय बाद श्रमण भगवान् महावीर मायुछे. “तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई पुव्वाणुपुवि चर. माणे जाव जेणेव में ढियगामे नयरे, जेणेव सालकोदए चेइए जाव परिसा पडि. गया" श्रम मावान महावीर हिवसे, उभश: सुमधु, मे ગ્રામથી બીજે ગામ વિહાર કરતાં કરતાં જ્યાં મંઢિકગ્રામ નગર હતું અને તે નગરની બહાર જ્યાં શાલકેષ્ઠક ચિત્ય હતું, ત્યાં પધાર્યા. મહાવીર પ્રભુના આગમનના સમાચાર સાંભળીને તેમને વંદણનમસ્કાર કરવાને માટે તથા તેમના વચનામૃતનું પાન કરવાને માટે ત્યાંના લેકેનો સમુદાય–પરિષદનીકળી પડે. તે ઘણી વિશાળ પરિષદને મહાવીર પ્રભુએ ધર્મામૃતનું પાન કરાવ્યું. ત્યાર બાદ તે પરિષદ વિસજિત થઈ લેકે પિતાપિતાને ઘેર પાછા ३१ गया. "तए ण समणस्म भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायंके पाउन्भूए, उज्जले जाव दुरहियासे पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवकंतीए यावि विहर" सा समय मा श्रम भगवान महावीरना शरीरमा શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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