Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 769
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १९ रेवतीदानसमीक्षा ७५५ 'सीहा ! समणे भगवं महावीरे सीहं अणगारं एवं वयासी' हे सिंह ! अनगार ! इति सम्बोध्य श्रमणो भगवान् महावीरः सिंहम् अनगारम् एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'से णूणं ते सीहा ! झाणंतरियाए वढमाणस्स अयमेयारूचे जाच परुण्णे, से णूणं ते सीहा ! अढे समढे !' हे सिंह ! अनगार ! तत् अथ, नूनंनिश्चितम् , तव ध्यानान्तिरकायां-ध्यानमध्ये वर्तमानस्य, अयमेतद्रूपः-उक्तस्वरूपो यावत् आध्यात्मिकश्चिन्तितः, कल्पितः, प्रार्थितः, मनोगतः संकल्पः समुदपद्यतयत् मम धर्माचार्यस्य धर्मोपदेशकस्य श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य शरीरके विपुलो रोगातङ्कः प्रादुर्भूतः, उज्ज्वलो यावत् छद्मस्थ एव कालं करिष्यति, अन्यतीथिकाश्च वदिष्यन्ति यत्-महावीरश्छद्मस्थ एव कालगतः, अनेन एतद्रूपेण महता मनोमानसिकेन मनस्येव न बहिः, वचनादिभिरप्रकाशितत्वात् यन्मासि -विनय से शुश्रषमाण होते हुए दोनों हाथ जोड़कर उनकी पर्युपासना कि-सीहा ! समणे भगवं महावीरे सीहं अणगारं एवं बयासी' श्रमण भगवान महावीर ने हे सिंह ! इस प्रकार से सम्बोधित करके उन सिंह अनगार से ऐसा कहा-'से नूर्ण सीहा ! झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे जाव परुण्णे' हे सिंह ! जब तुम ध्यान के बीच में वर्तमान बैठे हुए थे तब तुम्हें उक्तस्वरूपवाला घावत् आध्यात्मिक, चिन्तित, कल्पित, प्रार्थिन, मनोगत ऐसा यह संशला उत्पन्न हुआ कि मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर के शरीर में विपुल रोगातंक प्रकट हुआ है । जा उज्ज्वल है यावत् इस कारण वे छद्मस्थावस्था में ही काल कर जावेगे, तब अन्यतीर्थिक जन कहेंगे कि महावीर छमस्थावस्था में ही काल कर गये हैं । सो तुम्हें इस बात से हार्दिक दुःख है, वासइ” त्या२ मा यानमः४।२ री विनयपू१४ म.२ सय नसन तस तमनी ५युपासना ४२१। सान्या. “ सिहा! समणे भगवौं महावीरे सीहं अणगारं एवं वयासी" " सि!" 241.५४१२ समाधन शन, श्रम सगवान महावीरे सि अमारने या प्रमाणे :-"से नूगं सीहा ! झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे जाव परुण्णे" "3 सि! न्यारे तमे ધ્યાનમાં બેઠાં હતાં, ત્યારે તમારા મનમાં આ પ્રકારનો આધ્યાત્મિક, ચિતિ, કહિપત, પ્રાર્થિત અને મને ગત વિચાર ઉત્પન્ન થયે હતે-“મારા ધર્માચાર્ય, ધર્મોપદેશક શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના શરીરમાં વિપુલ ગાતક પ્રકટ થયે છે. આ દાહજનક, પ્રચંડ આદિ વિશેષણવાળા આ રોગને કારણે તેઓ છસ્થાવસ્થામાં જ કાળધર્મ પામશે ત્યારે અન્યતીથિકે એવું કહેશે કે મહાવીર સ્વામી તે છદ્મસ્થાવસ્થામાં જ કાળધર્મ પામ્યા છે. તે કારણે તમારા શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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