Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीस्त्रे मस्थ एव-छद्मस्थावस्थायामेव कालगतः-मृतः, 'समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव विहरई' श्रमणो भगवान् महावीरो जिनो जिनालापी, यावत्अर्हत् अर्हत्सलापी, केवली के वलिमलापी, सर्वज्ञः सर्वज्ञप्रलापी, जिनो जिनशब्द प्रकाशयन् विहरति । 'महया अणिडि असकारसमुदएणं ममं सरीरगस्स नीहरणं करेज्जाह, एवं वदित्ता कालगए' महता अनृद्धयसत्कारसमुदयेन ऋद्धिसत्कारवनितेन समुदायेन-जनसंघेन, मम शरीरकस्य निर्हरणं-बहिनिष्काशनं करिष्यथ, एवं रीत्या, उदित्वा-उक्त्वा, कालगतः-मृतः ॥ सू० १७ ॥
मूलम्-"तए णं आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराई अवर्णकारक है, अकीर्तिकारक है, यह छद्मस्थावस्था में ही मरा है। 'समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव विहरई' श्रमण भगवान् महावीर जिन हैं, जिनप्रलापी हैं, यावत् वे ही अर्हन्त हैं, अर्हन्तः प्रलापी हैं, केवली हैं केवलीप्रलापी हैं, सर्वज्ञ हैं और सर्वज्ञ प्रलापी हैं, तथा जिन होकर वे ही अपने में 'जिन' इस शब्द के अर्थ को सार्थक कर रहे हैं । 'महया अणिड्डिअसकारसमुद्रण ममं सरीरगस्स नीहरणं करेज्जाह' अतः अब आप लोग विना किसी ऋद्धि और सत्कार समु. दाय के मेरे शरीर को बाहर निकालना । अथवा ऋद्धि और सत्कार वर्जित समुदाय-जनसंघ के साथ मेरे शरीर को-शष को बाहर निकालना। ‘एवं वदित्ता कालगए' ऐसा कह कर मर गया । सू० १७॥ जुत्ता , अवय ४।२४ (निन्। २२) छे, म२ मधील २४ छ. छमस्थावस्थामा भर पाभ्य। छ. “समणे भगवं महावीरे जिणे, जिणप्पलावी जाव विहर” श्रम समान् महावी२ ४ जिन छ भने प्रक्षपीछे, અહત છે અને અહંતપ્રલાપી છે, કેવલી છે અને કેવલિપ્રલાપી છે, સર્વજ્ઞ છે અને સર્વજ્ઞપ્રલાપી છે, તેઓ જ યથાર્થ રૂપે જિન છે અને જિન શબ્દને साथ ४२॥ वियरी ४ा छ-"महया अणिड्ढि असक्कारसमुदएण मम सरीरगस नीहरण करेजाह" तो छ ५ प्रा२नी ऋद्धि (धामधूम) मत સત્કાર સમુદાય વિના તમે મારા મૃતશરીરને બહાર કાઢજે અથવા અદ્ધિ અને સત્કાર રહિત જનસમુદાય-જનસંઘની સાથે મારા શબને બહાર
२. “ एवं वदित्ता काल गए” मा प्रमाणे माला स्थविराने डीन तणधर्म पाभ्या. ॥सू०१७।।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧