Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 745
________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १५ उ०१ सू० १८ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ७३१ पिहेंति, पिहित्ता, हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्झदेसभाए सावस्थि नयरिं आलिहति, आलिहिता, गोसालस्स मंखलिपुतल सरीरगंवामे पाये सुंबेणं बंधंति, बंधित्ता तिक्खुत्तो मुहे उडुटुंति, उखुट्टेत्ता, सावत्थीए नयरीए सिंघाडग जाव पहेसु आकविकड़ि करेमाणा णीयं णीयं सद्देणं उग्घोसेमाणा, उग्घोसेमाणा एवं वयासी-नो खलु देवाणुप्पिया! गोताले मंखलि. पुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव विहरिए, एस णं गोसाले मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए, समणे भगवं महावीरे जिणे जिगप्पलावी जाव विहरइ, सवह पडिमोक्खणगं करेंति, करेत्ता दोच्चपि पूयासकारथिरीकरणट्टयाए गोसालस्स मंखलिपुत्तस्त वामाओ पादाओ सुंबं मुयंति, मुयित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे दुवारवयणाई अवगुणंति, अवगुणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं सुरभिणा गंधोदएणं पहाणेति, तं चेव जाव महया इड्डिसकारसमुदएणं गोसालस्त मंखलिपुत्तस्स सरीरस्त नीहरणं करेंति ॥सू०१८॥ छाया-ततः खलु आजीविकाः स्थविराः गोशालं मङ्खलिपुत्रं कालगतं ज्ञाना हालाहलायाः कुम्भकार्याः कुम्भकारापणस्य द्वाराणि पिदधते, पिधाय हालाहलायाः कुम्भकार्याः कुम्मकारापणस्य बहुमध्यदेशमागे श्रावस्ती नगरीम् आलिखन्ति, आलिख्य गोशालस्य मङ्खलिपुत्रस्य शरीरकं वामे पादे शुम्बेन बध्नन्ति, बद्धा त्रिकृत्वो मुखे आठीव्यन्ति, अवष्ठीव्य श्रावस्त्या नगर्याः शृङ्गाटक यावत्यथेषु आकृष्टिविकृष्टिकाम् कुर्वन्तो नीचैः नीचैः शब्देन उद्घोषयन्तः उद्घोषयन्तः एवम्-आदिषुः-नो खलु देवानुप्रियाः ! गोशालो मङ्खलिपुत्रो जिनो जिन पलापी यावत् विहृतः, एप खलु गोशालो मङ्खलिपुत्रः श्रमणघातको यावत् छद्मस्थ एव कालगतः श्रमणो भगवान महावीरो जिनोजिन. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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