Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 746
________________ ७३२ भगवतीसूत्रे मलापी, यावत् विहरति, शपथप्रतिमोक्षणकं कुर्वन्ति, कृत्या द्वितीयमपि पूजासत्कारस्थिरीकरणार्थताय गोशालस्य मङ्गलिपुत्रस्य वामात् पादात् शुम्बं मोचयन्ति, मोचयित्वा हालाहलायाः कुम्भकार्याः कुम्भकारापणे द्वारवदनानि अपगुणयन्ति, आगुण्य गोशालस्य मङ्खलिपुत्रस्य शरीरकं सुरभिणा गन्धोदकेन स्नपयन्ति, तदेव यावत् महता ऋद्धिसत्कारसमुदयेन गोशालस्य मंखलिपुत्रस्य शरीरस्य निर्हरणं कुर्वन्ति ॥ सू० १८ ॥ टीका-अथ गोशालय आज्ञानुसारं शरीरदाहसंस्कारादिकं प्ररूपयितु. माह-'तए गं' इत्यादि । 'तए णं आजीविया थेरा गोसालं मखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता हालाहालाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराई पिहेंति' ततः खलु आजीविकाः स्थविराः गोशालं मंखलिपुत्रम् काला-मरणधर्मप्राप्तं ज्ञात्वा, हालाहलायाः कुम्भकार्याः कुम्भकारापणस्य द्वाराणि पिदधते-आवृषन्ति, 'पिहित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्झदेसभाए सावत्थि नयरिं आलिहंति' पिधाय-आच्छाघ, हालाहलायाः कुम्भकार्याः कुम्मकारापणस्य बहुमध्य'तएणं आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता' इत्यादि। टीकार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने गोशाल की आज्ञा के अनुः सार उसके शरीर का दाहसंस्कार आदि किया गया यह प्ररूपित किया है-'तए णं आजीविया गोसालं मखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता हालाहलाए कुभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराई पिहें ति' इसके बाद आजीविक स्थविरों ने जब मंखलिपुत्र गोशाल को मरणधर्मप्राप्त हुआ जाना तो जानकर उन्होंने हालाहला कुभकारिणी के कुभकारापण के सब दरवाजों को बंध कर दिया 'पिहित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुभ कारावणस्स बहुमज्झदे सभाए सावत्थिनयरिं आलिहंति' दरवाजों को बंद करके फिर उन्होंने हालाहला कुंभकारिणी के कुभकारापण के " तर ण' भाजीविया थेरा" त्या ટીકાર્થ–આ સૂત્ર દ્વારા દેશાલના મૃતદેહને અગ્નિસંસ્કાર કેવી રીતે ४२पामा मान्य. सू४२ प्रगट ४२ छ "तए णं आजीविया थेरा गोसालं मखलिपुतं कालगय जाणित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवाराइं पिहेति" જયારે મખલિપુત્ર ગોશાળ કાળધર્મ પામ્યા, ત્યારે આજીવિકપાસક સ્થવિરેએ હાલાહલા કુભકારિણીના કુંભકારાપણના બધા દરવાજા બંધ કરાવ્યા. "पिहित्ता हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्झदेसभाए सावत्थि नयरिं आलिहेइ” ४२५० ५५ ४शन, तेमणे डासा महिना શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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