Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १७ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ७२९ विहरिए' भो देवानुपियाः ! नो खलु निश्चयेन गोशाको मङ्खलिपुत्रो जिनो जिनप्रलापी यावत्-नो अईन् अर्हत्यापी, नो के वली केलिमलापी, नो सर्वज्ञः सर्वज्ञप्रलापी, नो जिनशब्दं प्रकाशयन् विहतः अपितु 'एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए' एष खलु गोशालो मङ्खलिपुत्रः श्रमणघातको यावत्-श्रमणमारकःश्रमणप्रत्यनीका, आचार्योपाध्यायानाम् अयशस्कारकः, अवर्णकारका, अकीतिकारकः इत्यादि पूर्वोक्तविशेषणविशिष्टः छद् गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव विहरिए' हे देवानुप्रियो ! मंखलिपुत्र गोशाल जिन नहीं है, जिनप्रलापी नहीं है, अर्हन्त नहीं है, अर्हन्त प्रलापी नहीं है, केवली नहीं है केवलिप्रलापी नहीं है, सर्वज्ञ नहीं है सर्वज्ञ प्रलापी नहीं है, जिन नहीं है और न वह जिन शब्द का सार्थक रूप से अपने में प्रकाशक ही है-अथवा इसका ऐसा भी अर्थ हो सकता है कि मंखलिपुत्र गोशाल जिन नहीं था, केवल जिनप्रलापी था यावत् वह वास्तव में अर्हन्त नहीं था किन्तु अपने को अहंन्त मान रहा था, केवली नहीं था, किन्तु अपने को केवली मान रहा था, सर्वज्ञ नही था, किन्तु अपने को सर्वज्ञ मान रहा था, जिन नहीं था, परन्तु मैं जिन शब्द का प्रकाशक हूं ऐसा जूठमूठ अपने को मान रहा था। 'एसणं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए, जाव छउमत्थे चेव कालगए' यह मंखलिपुत्र गोशाल ही श्रमणजनों का मारक है, श्रमण जनों का प्रत्यनीक-विरोधी है, आचार्य एवं उपाध्याय इनका अयशस्कार जिणापलावी जाव विहरिए " " ३ वानुप्रियो ! भलिपुत्र सास लिन નથી અને જિનપ્રલાપી પણ નથી, અહંત નથી અને અહંતપ્રલાપી પણ નથી, કેવળી નથી અને કેવળિપ્રલાપી પણ નથી, સર્વજ્ઞ નથી અને સર્વજ્ઞપ્રલાપી પણ નથી, તે સાચો જિન પણ નથી અને જિન શબ્દને સાર્થક કરનારો પણ નથી. અથવા આ કથનનો અર્થ આ પ્રમાણે પણ કરી શકાય છે-સંબલિપત્ર ગોશાલ જિન ન હતો છતાં જિન હોવાને પ્રચાર કરી રહ્યો હતો, અહંત ન હોવા છતાં પિતે અહંત રૂપ હોવાને દંભ ચલાવી રહ્યો હતો, કેવળી ન હોવા છતાં પણ પિતાની જાતને કેવળી માની રહ્યો હતે, સર્વજ્ઞ ન હોવા છતાં પિતાની જાતને સર્વજ્ઞ કહેતા હતા. તે જિન કહેવાને ગ્ય ન હતું છતાં પોતે જિન શબ્દને સાર્થક કરી રહ્યો છે, એ प्रया२ ४२ते। ५२ तो. “ एस ण गोसाले चेव मखलिपुत्ते, समणघायए जाव छ उमत्थे चेव कालगए" ! #मलिपुत्र गोशाम ४ श्रमणाने। धात छ, श्रमाने प्रत्यानी (
विधा) छे. माया भने पाध्यायनी अयश. भ० ९२
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧