Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 741
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१५ उ० १ सू० १७ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ७२७ एवं वयासी'-कृत्वा एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'नो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी जाव पगासेमाणे विहरिए' नो खलु निश्चयेन अहं जिनो जिनालापी, यावत् नो अर्हन् अर्हत्पलापी, नो केवली केवलिपलापी, नो सर्वज्ञः सर्वज्ञपलापी, नो जिनो जिनशब्दं प्रकाशयन् विहृतोऽस्मि, 'अहं गं गोसाले मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सं' अहं खलु गोशालो मङ्खलिपुत्रः श्रमणघातको यावत्-श्रमणमारकः, श्रमणपत्यनीकः, छद्मस्थ एव कालं करिष्यामि, 'समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसदं पगासेमाणे विहरई' श्रमणो भगशन् महावीरो जिनो जिनमलापी यावत्-अईन अर्हत्मलागी, केवली 'करित्ता एवं वयासी' अनेकानेक शपथों से शापित करके फिर उसने उनसे ऐसा कहा-'नो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी, जाव पगासेमाणे विह. रिए मैने जिन और जिन प्रलापी होकर, अर्हन् अर्हत्पलापी होकर, केवली केवलीप्रलापी होकर, सर्वज्ञ सर्वज्ञप्रलापी होकर एवं जिन और जिनशब्द का प्रकाशक होकर मैंने विहार नहीं किया है, 'अहं गं गोसाले मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छ उमत्थे चेव कालं करेस्स' मैं तो मंख लिपुत्र गोशाल ही हूं-दूसरा नहीं हूं, मैंने श्रमणजनों का घात किया है, यावत् श्रमणजनों को मारा है, मैं सदा से उनका विरोधी रहा हूँ। मैं छद्मस्थावस्था में ही काल करूंगा 'समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसई पगासेमाणे विहरइ' वास्तव में तो श्रमण भगवान् महावीर ही जिन हैं, जिनप्रलापी हैं, यावत् अर्हन्त हैं, अह. प्रमाण यु'-" नो खलु अहं जिणे, जिणप्पलावी, जाव पगासेमाणे विहरिए" હું જિન નથી છતાં જિન રૂપે મારી જાતને પ્રકટ કરી રહ્યો હતો, અહંત નથી, છતાં પણ મારી જાતને અહંત રૂપે ઓળખાવતે હતે, કેવલી ન હોવા છતાં પણ કેવલી હવાને દંભ કરતે હેતે, સર્વજ્ઞ ન હોવા છતાં પણ સર્વજ્ઞ હેવાને ટૅગ કરતું હતું, અને યથાર્થ રૂપે જિન ન હોવા છતાં 40 CEA ने साथ ४२तेवियरवाना २ . “अहं ण गोमाले मखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्स" तो મખલિપુત્ર ગોશાલ જ છું, અન્ય કોઈ નથી, મેં શ્રમને ઘાત કર્યો છે, મેં શ્રમણાની હત્યા કરી છે, હું સદા તેમને વિરોધી જ રહ્યો છું, હું छअस्थावस्थामi or m 3रीश. "समणे भगवं महावीरे जिणे, जिणप्पलावी जाव जिणसई पगासेमाणे विहरइ" भरी रीत तो श्रम समपान महावीर r , ravana , म त छ, तापी छ, पक्षी छे શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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