Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे पुरुषस्तान् देवान् जम्भकान्-तुष्टान्-तोषयुक्तान् पश्येत्, स खल पुरुषो महद् यशःवैक्रियलब्ध्यादिकं प्राप्नुयात् । प्रकृतार्थमुपसंहरनाह-'से तेणटेणं गोयमा ! जंभगा देवा जंभगा देवा' हे गौतम ! तत्-अथ, तेनार्थेन, जृम्भका देवाः जम्मक पदव्यपदेश्याः जम्भका देवा इत्युच्यन्ते ! गौतमः पृच्छति-'कइविहाणं भंते ! जंभगा देवा पण्णता?' हे भदन्त कतिविधाः खलु जम्भकाः देवाः प्रज्ञप्ताः ? भगचानाह-'गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता' हे गौतम जम्मका देवाः दशविधाः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा-ते यथा-'अनजभगा, पाणजभगा, सयणजभगा, पुष्फजंभगा, फलजंभगा, पुष्फफलजंभगा, बीयजंभगा,अवियत्तनंभगा' अन्नजृम्भकाः वस्त्रजृम्भकाः, लयनजृम्भका, शयनजृम्भका, पुष्पजम्भकाः फलजम्मकाः पुष्पफळजृम्भकार, जुंभक देवों को संतुष्ट हुआ देखता है, वह पुरुष बडे भारी यश को वैक्रियलब्धि आदि को प्राप्त करता है ‘से तेणटेणं गोयमा ! जंभगा देवा जंभगा देवा' इसी कारण हे गौतम ! जुंभकदेव यह पद जंभकदेव इस अर्थ का वाचक हैं । अर्थात् ज़ुभकदेव शब्द के वाच्य जुंभक देव हैं। अव गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'कइविहाणं भंते ! जंभगा देवा पण्णत्ता' हे भदन्त ! ज़ुभकदेव कितने प्रकार के कहे गये हैं-इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! जुंभक देव १० प्रकार के कहे गये हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'अन्नज भगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणगंभगा, सयणजंभगा, पुष्फजंभगा, फलजंभगा पुप्फफलजंभगा, बीयजंभगा, अवियत्तजंभगा' अनजभक, पानजुंभक, वस्त्रजुंभक, लयनāभक, शयनजुंभक, पुष्पमुंभक, फलजुंभक, पुष्प દેવેને સંતુષ્ટ થયેલા જુવે છે, તે પુરુષ ભારે યશની વૈક્રિયલબ્ધિ આદિની) प्राति घरे . “से तेणट्रेण गोयमा ! जाव जंभगा देवा, जंभगा देवा" . ગૌતમ ! આ કારણે મેં એવું કહ્યું છે કે “ ભક દેવ” આ પદ ઉપર દર્શાવ્યા એવાં જંભક દેવેનું વાચક છે.
गौतम स्वामीन। प्रश्न-"कइ विहा ण भंते ! जंभगा देवा पण्णत्ता" હે ભગવન્! જભક દે કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે?
महावीर प्रभुनी उत्तरे-“ गोयमा ! दसविहा पण्णत्ता" गौतम ! मवाना हुस १२ छे. " तंजहा"ते । नीये प्रमाणे छ
'अन्नजंभगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणजंभगा, सयणजभगा, पुप्फर्जभगा, फलजंभगा, बीजजंभगा, अवियत्तजंभगा” (१) अन्नम, (२) पान. ४ , (3) १४४, (४) यन , (५) शयनम , (6) ५०५०४१४, (७) सम3, (८) ०५६ , () भीम मन (१०)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧