Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १६ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ६९५ मङ्खलिपुत्रः शीतलकेन मृत्तिकापानकेन-मृत्तिकामिश्रितजलेन, आतश्चनिको. दकेन-कुम्भकार गृहस्थितभाजनवर्तिमृत्तिका मिश्रित जलेन, गात्राणि शरीरावयवान् , परिषिश्चन विहरति-तिष्ठति, 'तस्स वि य णं बज्जल्स पन्छादणद्वयाए इमाई चत्वारि पाणगाइं चत्तारि अपाणगाई पन्नवेइ'-तस्यापि च-तथाविधगात्रपरिषे चनजनस्य च, खल अवधस्थ, वज्रस्य वा, वज्रसदृशत्वात पापस्य प्रच्छादनार्थतायै-आच्छादनाय, इमानि-वक्ष्यमाणानि चत्वारि पानकानि-साधुयोग्यजलविशेषरूपाणि प्रज्ञापयति-प्ररूपयति-से कि तं पाणए ?' अथ किं तत् पानकमुच्यते ? 'पाणए चउबिहे पण्मत्ते' पानकं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम् , 'तं जहा-गोपुट्ठए, हस्थमहियए, आयवतत्तए, सिलापट्टए, सेतं पाणए' तद्यथा-गोपृष्ठकम् , हस्तमदिनम् , आतपतप्तम् , शिलाप्रभृष्टकम् , तदेतत् पानकम् , तत्र गोपृष्ठात् यत्पतितं तद् गोपृष्ठकमुच्यते, हस्तेन मर्दितम्-मलितमित्यर्थः, हस्तमर्दितमुच्यते आर्यों मंखलिपुत्र गोशाल जो शीतल मृत्तिकामिश्रितजल से-कुभकार के घर पर रखे हुए वर्तन में गत मिट्टी से युक्त पानीरूप पानक सेशरीर के अवयवों को सींचता रहता है, सो 'तस्स वि य णं वज्जस्स पच्छादणट्टयाए इमाई चत्तारि पाणगाईचत्तारि अपाणगाई पनवेइ' उसने इस गात्रपरिषेचन जन्य अवध को-दोष को अथवा वज्रसदृश पाप को-ढांकने के लिये चार पानक-साधु योग्य जलरूप पेय कहे हैं।
और चार अपानक कहे हैं। ‘से किं तं पाणए' वह पानक क्या है ? अर्थात् पानक का क्या स्वरूप है ? तो इसका उत्तर यह है कि 'पाणए चबिहे पण्णत्ते' पानक-साधु योग्यजल रूप पेय-चार प्रकार का कहा गया है। तं जहा' जैसे-'गोपुट्ठए, हत्थमदियए, आयवतत्तए, सिलापभट्टए' गोपृष्ठ से पतित जो पानक है वह गोपृष्ठ पानक है, हाथ से મંખલિપુત્ર ગોશાલ જે શીતલ મૃત્તિકામિશ્રિત જળ વડે-કુંભારને ઘેરવા ખેલ વાસણમાં રહેલા માટીયુક્ત પાણી રૂપ પાનક વડે-શરીરના અવયનું સિંચન ४१ रह्यो छे, “तस्त वि य णं वजस्स पच्छादणदयाए इमाइं चत्तारि पाण गाइं चत्तारि अपाणगाई पनवे" ते मात्र५२सियन ३५ सपने (ोषने)વજી જેવા પાપને-ઢાંક્વાને માટે ચાર પાનક - સાધુને ઉપગમાં લેવા લાયક १९३५ चेय-हा छ भने यार अपान हा छ. ' से किं तं पाणए " ते पान नु. २५३५ छ, तहये प्र. ४२वामा मा छ-" पाणए चउ विहे पणते-तमहा" पान-साधुने योग्य ४४३५ पेय-यार प्रा२ना उद्या छ, नीय प्रमाणे -" गोपुद्रए, हत्थमदियए, आयवतत्तए, सिलापत्भदए " (१) ५४मांथा ५ २ पान छ, तेने गा४ान । छे. (२)
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧