Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० ६ गोशालक वृत्तान्तनिरूपणम् ५३५ जीवा उदाइता उदाइत्ता एयस्स चेत्र विलथंभयस्स एगाए तिलसंगुलियाए सत्ततिला पच्चायाया' ते च सप्ततिलपुष्पजीवाः, अपहूय अपद्वय एतस्यैव तिलस्तम्भकस्य एकस्यां तिलसंगुलिकायां सप्ततिलाः प्रत्याजाताः - प्रत्युत्पन्नाः, एवं खलु गोसाळा ! वणस्सइकाइया पउपरिहारं परिहरंति' हे गोशाल । एवं रीत्या खलु वनस्पतिकायिकाः परिवृत्यपरिहारं परिवृत्य-परिवृत्य-मृत्वा मृत्वा यस्तस्यैव वनस्पतिशरीरस्य परिहारः - परिभोगस्तत्रैव पुनरुत्पाद: - असौ परिवृत्य परिहारस्तं परिहरन्ति - कुर्वन्ति, 'तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयम नो सद्दहइ, नो पत्तियइ' नो रोयह' ततः खलु स गोशालो मङ्खलिपुत्रो मम एवम् उक्तप्रकारेण, आख्यायतः, यावद् भाषमाणस्य, प्रज्ञापयतः, जीवा उदाइन्ता २ एयस्स चेव तिलथंभयस्स एगाए तिलसंगुलियाए सत्त तिला पच्चायाया, और वे सात तिल पुष्पों के जीव मर २ कर उसी निलस्तम्भक की एक तिलफली में सात तिलरूप हो गये। 'एवं खलु गोसाला ! artaइकाइया पउg परिहारं परिहरंति' इस रीति से हे गोशाल ! वनस्पतिकायिक जीव मर मर कर छोडे हुए शरीर में पुनः उत्पन्न हो जाते हैं। यहां एक परिहार शब्द का अर्थ मरना और दूसरे परिहार शब्द का अर्थ करना हैं ! जिस शरीर को छोडा है उसी शरीर में पुनः उत्पन्न हो जाना इसका नाम परिवृत्यपरिहार है । वनस्पतिकायिक जीव इस परिवृत्य परिहार को करते हैं। 'तए णं से गोसाले मंखलिपुते ममं एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयमहं नो सहहह, नो पत्तियह, नो रोय' इस प्रकार से कहनेवाले, यावत् भाषण करनेवाले, प्रज्ञापना
सत्त पुष्कजीवा उदाइन्ता २ एयरस चेत्र तिलथं मयस्स एगाए तिळसंगुलियाए सत्त तिला पच्चायाया " रहने ते सात तसपुष्पना वो भईने भेब ताना छोडनी खेड तब सीमां सात तवइचे उत्पन्न या गया छे. " एवं खलु गोसाला ! areas काइया पउटु परिहारं परिहरंति " हे गोशास ! भारीते વનસ્પતિકાયિક જીવ મરી મરીને છેડેલા શરીરમાં જ ફરી ઉત્પન્ન થઈ જાય छे. अहीं पडे "परिहार ” પદ્મ મરણના અર્થમાં અને બીજું પરિહાર ” પદ્મ કરવાના અર્થમાં વપરાયુ' છે. જે શરીરને દેવુ' છે, એજ શરીરમાં ફી ઉત્પન્ન થઇ જવું તેનું તેનુ નામ પરિવૃત્યપરિહાર ’ છે. વનસ્પતિકાચિક જીવે. પરિતૃત્યપરિડાર કરે છે. तर णं से गोसाले मंखलिपुत्त मम एत्र माइ ख मा णस्स जाव परूवे नाणरस एयमट्ठ नो सहइ, नो पत्तियइ नो रोय આ પ્રમાણે કહેનારા, ભાષિત કરનારા, પ્રજ્ઞાપિત કરનારા અને
66
“
"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
66