Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १५ उ० १ सू० १५ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ६६९ जहा नामए तणरासीइ वा, कट्टरासीइ वा, पत्तरासीइ वा, तयारासीइ वा' तुस. रासीइ वा, भुसरासीइ वा, गोमयरासीइ वा' अवकररासीइ वा' हे आर्याः ! तत्-अथ यथानाम-तुणराशिरिति वा, काष्ठराशिरिति वा, पत्रराशिरिति वा, त्वग्राशिरिति, तुषराशिरिति वा, बुसराशिरिति वा, गोमयराशिरिति वा, अबकरराशि:-कचवरराशिरिति वा 'अगणिझामिए अगणिझूसिए, अगणिपरिणामिए, हयतेये, गयतेये, नढतेये, भट्ठते थे, लुत्ततेये, विणढतेये जाव' अग्निध्मात:अग्निना ध्मातः-दग्धः, अथवा अग्निना ध्यामितः-ईपदग्धः, अग्निजुष्टः-अग्निना जुष्टः-सेवितः अग्निपरिणामित:-अग्निना परिणामं पापितः सन् हततेजाःहतं तेजो यस्य स तथाविधः धूल्यादिना ध्वस्ततेजाः गततेजा:-तेजोरहितः क्यचित् स्वत एव नष्टतेजाः, भ्रष्टतेजाः कचिद व्यक्ततेजाः लुप्ततेजाः, विनष्ट तेजाः उनसे ऐसा कहा-'अज्जो ! से जहानामए तणरासीइ वा कट्टरासीह वा, पत्तरासीइवा, तयारासीइ वा, तुसरासीह वा, गोमयरासीइ वा, अवकररासीइवा, हे आर्यों ! जैसे तृणराशि-तृणों का समूह, या काष्ठराशि-लकडियों का समूह, पत्रराशि-पत्रों का समूह, त्वगूराशि- छाल का समूह, तुषराशि-फोतरों का समूह, बुसराशि-भुसा का समूह, गामयराशि-केड़ों का समूह अथवा अवकरराशि-कूडा का समूह, "अगणिझामिए' अग्नि से दग्ध होकर, अथवा अग्नि से थोडा सा जला हुआ होकर, 'अगणिशसिए' अग्नि से खूब जला हुआ होकर या 'अगणिपरिणामिए' अग्नि से परिणत होकर । 'हयतेये, गयतेए, नट्ठ. तेये भट्टतेए, लुत्ततेए, विणढतेए जाव' हततेज-धूली आदि के पटक देने से ध्वस्ततेजवाली हो जाता है, गततेज-तेजरहित हो जाता है, कहीं पर स्वतः ही धीरे २ ते जरहित हो जाता है, नष्टतेज-नष्टतेजतमन २॥ प्रभये यु:-“ अज्जो ! से जहा नामए तणरासीइ वा, कट्टरासीइ वा, पत्तरासीइ वा, तयारासीइ वा, तुसरासीइ वा, भुसरासीइ वा, गोमयरासीइ वा, अवकररासीइ वा” उ माय ! रेभ. त श-धासन ढnal, जाशि (ensiना ढग), पशि, पशि (छासन ढग), तुष.
राशि (तराने anal), सुसराशि-भुसाना ढसा, भयराशि (नि। anal), अथवा ४यराना anal " अगणिझामिए " मभि 3 ४५ धन मेटले थे। प्रभामा मलीन, “अगणिझूखिए" भनि 43 धूम २४ मजान अथवा " अगणिपरिणामिए'' ममि पडे परियत २२ " हयतेये, गयतेए, नटवेय, भट्ठतेए, लुत्ततेए, विणढतेए जाव " तते (धू' मा નાખવાથી નષ્ટ તેજવાળી) થઈ જાય છે ગતતેજ (તેજરહિત) થઈ જાય છેકયારેક આપ મેળે જ ધીમે ધીમે તેજ રહિત થઈ જાય છે, નતેજ (નષ્ટ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧