Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे द्वौ जिनौ संलपतः परस्परं भाषेते-'एगे वयंति-तुमं पुब्बि कालं करेस्ससि' एके वदन्ति-त्वं पूर्व-प्रथम, कालं करिष्यसि, 'एगे वयंति-तुमं पुयि कालं करेस्ससि' एके अपरे वदन्ति-त्वम् पूर्व-प्रथमं कालं करिष्यसि, 'तत्थ णं के पुण सम्मावाई, के पुण मिच्छाबाई ?' तत्र-तयोयोमध्ये खलु कः पुनः जिनः सम्यग् वादीयथार्थवक्ता वर्तते ? कः पुनर्जिनो मिथ्यावादी वर्तते ? 'तत्थ णं जे से अहप्पहाणे जणे से चयइ-समणे भगवं महावीरे सम्मावाई, गोसाले मंखलिपुत्ते मिच्छा. वाई तत्र-तेषु मध्ये खलु योऽसौ यथा प्रधानो जनो-यो यः प्रधानो जनो वर्तते, स वदति-श्रमणो भगवान महावीरः सम्परावादी वर्तते, अथ च गोशालो मललिपुत्रो मिथ्यावादी वर्तते अन्नोत्ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंतेत्ता एवं क्यासी'-भो आर्याः ! इति सम्बोध्य श्रमणो भगवान् महावीरः श्रमणान् निर्ग्रन्थान् आमन्त्र्य, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्-'अज्जो ! से आपस में इस प्रकार से बातचीत कर रहे हैं-'एगे वयंति,-तुमं पुद्धि कालं करेस्ससि' इनमें एक एक से कह रहा कि तुम मुश से पहिले मरोगे। 'एगे वयंति-तुमं पुब्धि कालं करेस्ससि दूसरा कह रहा कि तुम मुझ से पहिले मरोगे' 'तस्थ णं के पुण सम्मावाई, के पुण मिच्छावाई' सो इनमें कौन सत्यवादी है और कौन असत्यवादी है । 'तत्थ णं जे से अहप्पहाणे जणे से वयइ-समणे भगवं महावीरे सम्मावाई, गोसाले मंखलिपुत्ते मिच्छावाई' तब इन मनुष्यों के बीच में जो प्रधान मनुष्य था, वह कहने लगा-श्रमण भगवान महावीर यथार्थवक्ता हैं और मंलिपुत्र गोशालक असत्यवादी है । 'अज्जो त्ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गंथे आमंत्तेत्ता एवं वयासी' हे आर्यो ! इस प्रकार से श्रमण निर्ग्रन्थों को संबोधित करके श्रमण भगवान् महावीर ने "एगे वयंति-तमं पुष्वि कालं करेस्ससि" तमाथी पालन त म भा। पां भर. " एगे वयति-तुम पुचि कालं करेस्ससि "मने भान पडदान छेतमे भा२। ५i भ२श. " तत्थ णं के पुण सम्मावाई, के पुण मिच्छावाई" तो ते मन्नमाथी ने सत्यवाही मानव। अनेने मसत्यवादी मानव। १ " तत्थ ण जे से अहप्पहाणे जणे से वयइ-समणे भगवं महावीरे सम्मावाई, गोसाले मखलिपुत्ते मिच्छावाई " त्यारे ते मनुष्यामा २ પ્રધાન (મુખ્ય) પુરૂષ હતું, તે કહેવા લાગ્યો “શ્રમણ ભગવાન મહાવીર यथार्थता छ भने म मलिपुत्र शाas असत्यवाही छे. “ अज्जो त्ति समणे भगव महावीरे समणे निगंथे आमत्तेता एव' वयासी" माय!" આ પ્રકારે શ્રમણ નિર્ગાને સંબોધન કરીને, શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧