Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १५ उ०१ सू० १२ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ६३१ वर्षाणि द्वितीयं प्रवृत्तिपरिहारं-शरीरान्तप्रवेशरूपम् , परिहरामि, 'तत्थ णं जे से तच्चे पउपरिहारे, से णं चंपाए नयरीए बहिया अंगमंदिरं चेइयंसि मल्लरामस्त सरीरगं विपनहामि' तत्र खलु-सप्तसु प्रोक्तेषु प्रवृत्तिपरिहारेषु, योऽसौ तृतीयः प्रवृत्तिपरिहारः उक्तः तस्मिन् खलु शरीरान्तरमवेशलक्षणे तृतीये प्रवृत्ति परिहारे, चम्पायाः नगर्या, बहिर्मागे अङ्गमन्दिरे चैत्ये मल्लरामस्य शरीरकम् विभजहामि-परित्यजामि, 'विष्यजहेत्ता मंडियस्स सरीरगं अणुप्पविसामि' विप्रहाय-परित्यज्य, मण्डिकस्य शरीरकम् अनुपविशामि, 'अणुप्पविसेत्ता, बीसं वासाई तच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि' अनुमविश्य विंशति वर्षाणि यावत् तृतीयं प्रवृत्ति. परिहारम्-शरीरान्तरमवेशम् , परिहरामि करोमि, 'तत्थ णं जे से चउत्थे पउट्टः परिहारे, से णं वाणारसीए नयरीए बहिया काममहावणंसि चेश्यसि मंडियस्स सरीरगं विपजहामि' तत्र खलु पूर्वोक्तसप्तप्रवृत्तिपरिहारेषु योऽसौ चतुर्थः पउपरिहारं परिहरामि' वहां प्रवेश कर मैंने २१ वर्ष तक इस द्वितीय प्रवृत्तिपरिहार को किया है । 'तत्थ णं जे से तच्चे पउपरिहारे, से णं चंपाए नयरीए बहिया अंगमंदिरं चेहयसि मल्लरामस्स सरीरगं विष्प. जहामि' उन सात प्रवृत्तिपरिहारों में जो तृतीय प्रवृत्तिपरिहार है, वह चंपानगरी के बाहर अंगमंदिर चैत्य में मल्लराम के शरीर का छोडना है। और 'विप्पजहेत्ता मंडियस्स सरीरगं अणुप्पविसामि' मण्डित के शरीर में प्रवेश करना हैं । 'अणुप्पविसेत्ता बीसं वासाई तच्च पउ. दृपरिहरं परिहारामि' यहां प्रवेश करके मेरा वीस वर्ष तक वहां रहना है। इस प्रकार मैंने वह तृतीय प्रवृत्तिपरिहार किया है । 'तत्थ णं जे से चउत्थे पउपरिहारे, से णं वाणारसीए नयरीए बहिया काममहावणंएकवीसं वाखाई दोच्चं पउट्टपरिहारं परिहरामि" त्यां प्रवेश न २१ वर्ष अघी मा भी प्रवृत्तिपरिवार निभाया. " तत्थ ण जे से तच्चे पउपरिहारे, से ण चंपाए नयरीए बहिया अंगमंदिरं चेइयंसि मल्लरामस्स सरीरगं विप्पजहामि" त्या२ मा २ पानगरीनी मा२ महि२ चैत्यमा मस. મને શરીરને છોડીને અન્ય શરીરમાં પ્રવેશ કરવાં રૂપ ત્રીજે પ્રવૃત્તિ પરિહાર में प्रो. “विप्पजहेत्ता मंडियस सरीरगं अणुप्पविसामि" मसरामना शरीर छो भरतना शरीरमा में प्रवेश ४. “ अणुप्पविसेत्ता वीसं वासाइं तच्च पउट्टपरिहारं परिहरामि" मतिना शरीरमा २० १ष सुधा । २धो. मा प्रारे श्रीने प्रवृत्तिपरिहा२ . “ तत्थ ण जे से चउत्थे पउट्टपरिहारे, से ण वाणारसीए नयरीए बहिया काममहावर्णसि चेइयंसि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧