Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
प्रवृत्तिपरिहारः उक्तः तस्मिन् खलु प्रवृत्तिपरिहारे वाराणस्याः नगर्याः बहिर्माग काममहावने चैत्ये मण्डिकस्य शरीरकं विप्रजहामि - परित्यजामि, 'विप्पज हेत्ता रोहस्स सरीरगं अणुष्पविसामि' विग्रहाय - परिश्यस्य, रोहस्य शरीरकम् अनुमविशामि, अणुष्पविसेत्ता, एकूणवीसं वासाइय चउत्थं पट्टपरिहार परिहरामि' अनुप्रविश्य एकोनविंशति वर्षाणि च चतुर्थं प्रवृत्तिपरिहारम् - शरीरान्तर प्रवेशरूपपरावर्तनं परिहरामि - करोमि, 'तत्थ णं जे से पंचमे पट्टपरिहारे से णं आलभिere are after पत्तकालगयंसि चेयंसि रोहस्स सरीरगं विजहामि' तत्र खलु सप्तसु पूर्वोकेषु प्रवृत्तिपरिहारेषु योऽसौ पञ्चमः प्रवृत्तिहारः उक्तः तस्मिन् खलु पञ्चमे प्रवृत्तिपरिहारे आलभिकाया नगर्याः बहिर्मागे प्राप्तकालगते चैत्ये रोहस्य शरीरकं विमजहामि परित्यजामि, 'विप्पनहेत्ता भारद्दाइस्स सरीरगं अणुप्पविद्यामि' विमाय- परिस्यज्य भारद्वाजस्य शरीरकम् अनुप्रविशामि ' सि चेयंसि मंडयस सरीरगं विप्पजहामि' इन सात प्रवृत्तिपरिहारों में जो चतुर्थप्रवृतिपरिहार है वह मैंने वाराणसी नगरी के बाहर काममहावन चैत्य में मंडित के शरीर का छोडना है और 'बिप्पजहेसा रोहस्स सरीरंगं अणुष्पविसामि' और उसे छोडकर रोह के शरीर में मवेश करना है 'अणुप्पविसेत्ता एगूणवीसं वासाइयं चउत्थं पउट्टपरिहारं परिहरामि' वहां प्रवेश कर मैं १९ वर्ष तक उस शरीर में रहा । इस प्रकार से मैंने यह चतुर्धप्रवृतिपरिहार किया है। 'तस्थ णं जे से पंचमे परिहारे से णं आलभियाए नयरीए बहिया पत्तकालगयंसि चेयंसि रोहस्स सरीरंग विष्पजहामि' इन सातप्रवृत्ति परिहारों में जो पंचम प्रवृत्तिपरिहार है, उसमे आलभिका नगरी के बाहर प्राप्त काल
चैत्य में रोह के शरीर का छोडना है । “विष्वजहेत्ता भारद्दाइस्स मंडियस सरीरगं विप्पजहामि " पूर्वेति सात प्रवृतिपरिहारामांना थोथी પ્રવૃત્તિપરિહાર મે. વારાણસી નગરીની બહાર કામમહાવન ચૈત્યમાં કર્યાં. त्यां मैं भडितना शरीरने छोड्यु "विप्पजहेत्ता रोहस्स सरीरंग अणुप्पविसामि " भडितना शरीरने छोडीने भें रोहना शरीरभां प्रवेश अय, अणुपवसेत्ता एगूणवीसं वासाइयं चउत्थं पउट्टपरिहारं परिहरामि " ते शरीरभ પ્રવેશ કરીને હું ૧૯ વષ સુધી તે શરીરમાં રહ્યો આ પ્રકારે મે'ચેાથે! પ્રવૃત્તિ परिद्वार (शरीरान्तर प्रवेश) ये. " तत्थ णं जे से पंचमे पउट्टपरिहारे से णं आभियाए नयte बहिया पत्तकालायंसि चेइयंसि रोहस्स सरोरगं विष्पज हामि, विप्पजत्ता भारद्दाइरस सरीरगं अणुष्पविसामि " त्यार माह ग्यासलि नगरीनी
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧