Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयन्द्रका टीका श० १५ उ० १ सू० ६ गोशालकवृत्तान्तनिरूपणम् ५२९ पाउन्भूए, तए णं से दिव्वे अब्भवदलए खिप्पामेव तं चेव जाव तस्त चेव तिलथंभगस्स एगाए मिलसंगुलियाए सत्ततिला पच्चायाया, तं एसणं गोसाला! से तिलथंभए निफ्फन्ने, णो अणिफ्फन्नमेव, ते य सत्ततिलपुफ्फजीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता एयस्त चेव तिलथंभयस्स एगाए तिलसंगुलियाए सत्ततिला पच्चायाया, एवं खलु गोसाला! वणस्सइकाइया पउपरिहारं परिहरंति। तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवमाइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स एयमटुं नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोययइ, एयमटुं असदहमाणे जाव अरोएमाणे जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ताओ तिलथंभयाओ तं तिलसंगुलियं खुड्डइ, खुड्डित्ता करयलंसि सत्त तिले पफ्फोडेइ, तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ते सत्ततिले गणमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था-एवं खलु सव्व जीवा वि पउपरिहारं परिहरंति । एसणं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स पउट्टे एस गं गोयमा! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स ममंअंतियाओ आयाए अवकमणे पण्णत्ते ॥सू०६॥ ___ छाया-ततः खलु अहं गौतम ! अन्यदा कदाचित् गोशालेन मङ्खलिपुत्रेण सार्द्ध कूर्मग्रामाद् नगरान् सिद्धार्थ ग्राम नगरं संपस्थितो विहाराय, यदाच आवां तं देशं शीघ्रमागतो, यत्र खलु स तिलस्तम्भकः । ततः खलु स गोशालो मङ्खलिपुत्र एवम् अवादीत्-यूयं खलु भदन्त ! तदा माम् एवम् आख्यत, यावत् पारूपयत-गोशाल ! एष खलु तिलस्तम्भको निष्पत्स्यते; तदेव यावत् प्रत्यायास्यन्ति, तत् खलु मिथ्या, इदं च खलु प्रत्यक्षमेव दृश्यते-एष खलु स तिलस्तम्भको नो निष्पन्नः, अनिष्पन्न एव, ते च सप्ततिलपुष्पनीवाः अपद्रूय अपद्रूय नो एतस्यैव तिलस्तम्भकस्य एकस्यां
भ० ६७
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
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