Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० १० सू० १ केवलीप्रभृतिनिरूपणम् ४२५ व्याकुर्याद्वेति ? भगवानाह-'गोयमा ! केवली णं उठाणे सकम्मे, सबले सवी. रिए, सपुरिसकारपरक्कमे' हे गौतम ! केवली खलु सोत्थानः-उत्थानसहितः, सकर्मा-सव्यापारः, सबलः, सवीर्यः सपुरुषकारपराक्रमो भवति, किन्तु 'सिद्ध णं अणुहाणे जाव अपुरिसकारपरकमे' सिद्धः खलु अनुत्थानः उत्थानरहितः, यावत्अकर्मा, अबला, अवीयः, अपुरुषकारपराक्रमो भवति, ‘से तेणटेणं जाव वागरेज्जा वा, तत्-अथ तेनार्थेन यावत् -केवलिवद् नो सिद्धः भाषेत वा, व्याकुद्वेिति भावः गौतमः पृच्छति- केवली णं भंते ! उम्मिसेज्ज वा, निम्मिसेज्ज वा?' हे भदन्त ! केवली खलु किम् उन्मित्-नेत्र मुन्मीलयेद् वा ? , अथ च निमिषेत्-नेत्रं निमीलयेद् वा ? भगवानाह-हता उम्मिसेज्ज वा, निम्मिसेज्ज पूछने पर उत्तर देते हैं, वैसे सिद्ध नहीं बोलते हैं, और न पूछने पर उत्तर देते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! केवली णं सउट्ठाणे, सकम्मे, सबले, सवीरिए, सपुरिसकारपक्कमे' हे गौतम! केवली उत्थान सहित होते हैं, व्यापारसहित होते हैं, बलसहित होते हैं, वीर्यसहित होते हैं, एवं पुरुषकार पराक्रम से युक होते हैं, परन्तु सिद्ध 'सिद्धणं अणुटाणे जाव अपुरिसकारपरकमे' उत्थान रहित होते हैं यावत् व्यापार रहित होते हैं, घल रहित होते हैं, वीर्यरहित होते हैं, एवं पुरुषकार पराक्रम से रहित होते हैं 'से तेणटेणं जाव वागरेज्ज वा' इस कारण वे केवली
के जैसे न बोलते हैं और न प्रश्नों का उत्तर देते हैं। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'केवली गं भंते ! उम्मिसेज्ज वा, निम्मिसेज्ज था' हे भदन्त ! केवली अपने नेत्रों का उन्मीलन करते हैं ? निमीलन करते हैं क्या ? उत्तर में प्रभु कहते हैंસિદ્ધ બોલતા પણ નથી અને પ્રશ્નના ઉત્તર પણ દેતા નથી?
महावीर प्रसुन उत्त२-" गोयमा ! केवलीण सउदाणे, सकम्मे, सबले, सवीरिए, सपरिसकारपरकमे" 3 गौतम ! वही उत्थान सहित हाय छ, વ્યાપાર સહિત હોય છે, બળયુક્ત હોય છે, વીર્યયુકત હોય છે અને પુરુ५४।२५२॥भयुत हाय छ, ५२न्तु “सिद्धे ण अणुद्वाणे, जाव अपुरिसकारपरकमे" સિદ્ધ ઉત્થાનરહિત હોય છે, વ્યાપારરહિત હોય છે. શારીરિક બળરહિત હોય छ, पायलित डायछ भने पुरुषा२५२।भथी ५५ २डित राय छे. “से तेणद्वेण जाव वागरेज्जा" गौतम ! ते ४२ मे मे युं छे वजी બોલે છે અને પ્રશ્નના ઉત્તર આપે છે, પરંતુ સિદ્ધ ખેલતા નથી અને પ્રાના ઉત્તર પણ આપતા નથી.
गौतम स्वामीना प्रश्न-“केवलीण भंते ! उम्मिसेज्ज वा, निम्मिसेज्ज वा” 8 सावन् ! जी शु. पोताना नेत्राने घाउ छ ? બંધ કરે છે ખરાં.
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧