Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेन्द्रका टीका श०१४ उ० ८ सू०७ व्यंतर विशेष जृंभक देवनिरूपणम् ३९१
तिम् आवासम् उपयन्ति प्राप्नुवन्ति । गौतमः पृच्छति - 'जंभगाणं भंते! देवाण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?' हे भदन्त ! जृम्भकाणाम् देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह - 'गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता' हे गौतम ! एक पल्योपमम् जृम्भकाणं देवानां व्यन्तरविशेषानाम् स्थितिः प्रज्ञप्ता । अन्ते गौतम आह, 'सेवं मते ! सेवं भंते । त्ति जाव विहरह' हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेव हे भदन्त ! तदेवं भवदुक्तं सत्यमेवेति प्रतिपादयन् गौतमो यावद्विहरति तिष्ठति ॥ सू० ७ ॥
"
इति श्री विश्वविख्यात जगद् वल्लभादिपद भूषित बालब्रह्मचारि 'जैनाचार्य ' पूज्यश्री घासीलाल व्रतिविरचितायां श्री "भगवती" सूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिका ख्यायां व्याख्यायां चतुर्दशशतकस्य अष्टमोदेशकः समाप्तः ॥ १४-८॥
पूछते हैं-जभगाणं भंते । देवाणं केवइथं कालं ठिई पण्णत्ता' जृंभकदेवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा ! एवं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता' हे गौतम! व्यन्तर देवविशेषरूप इन जंभक देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है । अब अन्त में गौतम कहते हैं - 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ' हे भदन्त । आपका कहा हुआ यह सब विषय सत्य ही है, हे भदन्त ! आपका कहा हुआ यह सब विषय सत्य ही है ऐसा कहकर वे गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये || सू० ७ ॥
जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराज कृत "भगवती सूत्र " की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके चौदहवें शतक का आठवाँ उद्देशक समाप्त ॥ १४-८ ॥
गौतम स्वामीनो प्रश्न - " जंभगाणं भंते ! देवाण केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?” हे भगवन् ! भूल हेवानी स्थिति हैटसा अजनी उही छे ? भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिई पण्णत्ता હે ગૌતમ! વ્યતર દેવવિવશેષ રૂપ આ જ઼ભકાની સ્થિતિ એક પત્યેાપમની उही छे. उद्देशाने मते गौतम स्वामी डे छे - “ सेवं भते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरइ " " हे भगवन् ! आप स्थन सत्य छे. हे लगवन् ! आये આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું, તે સર્વથા સત્ય જ છે, આ પ્રમાણે કહીને તેઓ પેાતાના સ્થાને બેસી ગયા. ાસૂ॰ા
જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજ કૃત “ભગવતીસૂત્ર’’ની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના ચૌદમા શતકના આઠમા ઉદ્દેશે। સમાસ ૫૧૪-૮
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
ܕܕ
99