Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
सीहिं माणिएहिं देवेहिं सद्धि संपरिवुडे महया जाव विहरह ' तत्र खलु तादृश पूर्वोक्त विशेषणविशिष्टे विकुर्विते सिंहासने सनत्कुमारो देवेन्द्रो देवराजो द्वा सप्तत्या सामानिकस | इस्त्रिकैः द्विसप्ततिसहस्र सामानिकैः यावत् - चतसृभिः द्वासप्ततिभिः आत्मरक्षक देवसाहस्रिकैः - अष्टाशीतिसहस्राधिकलक्षद्वयात्मरक्षक देवैश्व बहुभिः अनेकैः सनत्कुमार कल्पवासिभिः वैमानिकैः देवैस्सार्द्धं संपरिवृतः - परिवृतः, महता यावन् - आहत नाट्यगीततन्त्रीतलता लत्रुटिकवनमृदङ्गमत्युत्पादितरवेण दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जानो विहरति, ' एवं जहा सणकुमारे तहा जात्र पाणओ अच्चुभो' एवं तथैव यथा सनत्कुमारः प्रतिपादितस्तथैव यावत्- माहेन्द्रः ब्रह्मलोक, लान्तकः महाशुक्रः सहस्रारः, आनतः माणतः, आरणः, अच्युतश्च प्रतिपत्तव्यः, किन्तु 'नवरं जो जस्स परिवारो सो तस्स माणियव्वो' नवरम्क्खदेव साहस्सीहिय बहूहिं सर्णकुमारकप्पवासीहिं वेमाणिएहिं देवेहिय देवीहिय सद्धिं संरिबुडे महया जाव विहरह' पूर्वोक्तविशेषण विशिष्ट उस विकुर्वित सिंहासन के ऊपर देवन्द्र देव राज सनत्कुमार ७२ हजार सामानिक देवों के साथ, यावत् ८८ हजार अधिक दो लाख आत्मरक्षक देवों के साथ, अनेक सनत्कुसार कल्पवासी देवों के साथ, तथा देवीयों के साथ घिरा हुआ रहकर नाटय और गीतों के बजते हुए तंत्री, तल, ताल, त्रुटिक एवं घन मृदङ्गों की तुमुलध्वनिपूर्वक दिव्य भोग भोगों को भोगता है । 'एवं जहा सणंकुमारे तहा जाव पाणओ अच्चुओ' जिस प्रकार से सनकुमार के सम्बन्ध में यह वक्तव्यता प्रकट की गई है, उसी प्रकार से माहेन्द्र ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुरु, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत इन सब के सम्बन्ध में भी ऐसी वक्तव्यता जाननी चाहिये। 'नवरं
तास,
बहुहिं खर्णकुमारकपत्रासीहिं वेमाणिएहिं देवेहि य देवीडिय सद्धि संपवुिडे महया जाव विरइ " पूर्वोक्त विशेषवाजा ते विदुर्वित सिहासन पर દેવેન્દ્ર દેવરાજ સનત્કુમાર ૭૨૦૦૦ સામાનિક દેવાની સાથે, ૨૮૮૦૦૦ આત્મરક્ષક દેવાની સાથે, અનેક સનત્કુમાર કલ્પવાસી દેવા અને દેવીઓની साथै (अथवा तेमना समुहाय वडे वीटजाये। रहीने) तंत्री, तब, ત્રુટિક અને ઘનમૃદંગાના તુમુલધ્વનિપૂર્વક દિવ્યભાગલેાગાને ભાગવે છે. " एवं जहा सणकुमारे तहा जाव पाणओ अच्चुओ " सनत्कुमारना लागलोગેાના વિષયમાં અહીં જેવી વક્તવ્યતા પ્રગટ કરવામાં આવી છે, એજ प्रभारनी वक्तव्यता भाडेन्द्र, ब्रह्मसोड, सान्त, महाशुई, सहस्रार, अनंत, પ્રાત, આરણુ અને અચ્યુત, આ કલ્પાના દેવેન્દ્રોના ભાગલાગે વિષે પણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧