Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १४ उ० ७ सू० ३ तुल्यताप्रकारनिरूपणम्
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भाव
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हे मदन्त ! कतिविधं खलु तुल्यकम् - तुल्यं समं तदेव तुल्यकम् प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह - 'गोयमा ! छवि हे तुल्लए पण्णत्ते' हे गौतम! पडूविधं तुल्यकं प्रज्ञप्तम्, ' वं जहा - दव्त्रतुल्लए, खेत्ततुल्लए, कालतुल्लए, भवतुल्लए, भावतुल्लए, संठाणतुल्लए' तद्यथा - द्रव्यतुल्यकम् क्षेत्रतुल्यकम्, कालतुल्यकम् भवतुल्यकम्, तुल्यकम् संस्थान तुल्यकम् । गौतमः पृच्छति' से केण्णं भंते! एवं बुचदव्बतुल्लए दब्बतुल्लए? ' हे भदन्त । तत्-अथ केनार्थेन - कथं तावत्, एवमुच्यतेद्रव्यतुल्यकं द्रव्यतुल्यकमिति ? द्रव्यतुल्यकशब्दस्य कोऽर्थः ? भगवानाह - 'गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गकरस दव्बओ तुल्ले' हे गौतम! परमाणुपुद्गलः
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की है - इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'कविणं भंते । तुल्लए पण्णत्ते' हे भदन्त । तुल्यक-तुल्यता- समानता कितने प्रकार का कहा है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोधमा । छविहे तुल्लए पण्णत्ते' हे गौतम ! तुल्यता छ प्रकार की कही गई है। 'तं जहा' जो इस प्रकार से है- दव्बतुल्लए, खेत्ततुल्लए, कालतुल्लए, भवतुल्लए भावतुल्लए, संठातुल्लए' द्रव्यतुल्यक, क्षेत्रतुल्यक, कालतुल्यक, भवतुल्यक और भावतुल्यक तथा संस्थानतुल्यक ।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'से केणट्टेणं भंते ! एवंबुच्चइ दव्यतुल्लए, दव्वतुल्लए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि द्रव्यतुल्यक द्रव्यतुल्यक हैं ? अर्थात् द्रव्यतुल्यक इस शब्द का क्या अर्थ है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा । परमाणुपोराले परमाનિરૂપણ કરે છે-આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને गोवा प्रश्न पूछे छे - " कइविणं भंते ! तुल्लए पण्णत्ते ?" डे लगवन् ! તુલ્યતા (સમાનતા) કેટલા પ્રકારની કહી છે ? તેના ઉત્તર આપતા મહાવીર अनु छे - " गोयमा ! छवि हे तुल्छए पण्णत्ते - तंजहा " हे गौतम ! તુલ્યતા છ પ્રકારની કહી છે, જે પ્રકાશ નીચે પ્રમાણે છે-૮ दव्वतुल्लए, खेत्ततुल्लए, कालतुल्लए, भवतुल्लए, भावतुल्लए, संठाणतुल्लए " (१) द्रव्यतुल्य, (२) क्षेत्र तुझ्य४, (3) अजतुझ्यऊ, (४) लवतुझ्य, (4) भावतुल्य भने (१) संस्थान तुझ्य
गौतम स्वाभीनो प्रश्न- " से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ दव्वतुल्लए, दव्वतुल्लए ” હું ભગવન્ ! આપ શા કારણે એવું કહેા છે. કે દ્રવ્યતુલ્યક દ્રશ્યતુલ્યક છે ? એટલે કે દ્રવ્યયક આ પદના શે। અથ थाय छे ? महावीर अलुनो उत्तर- " गोयमा ! परमाणुपोभाले परमाणुपोगलस्स दव्वओ तुल्ले” हे गौतम! मे परमाणुयुद्ध द्रव्यार्थि नयनी अपेक्षाओ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૧
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