Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे मयस्थितिकत्वादिना नो तुल्यो भवति, एवं तुल्लअसंखेनसमयटिइए वि' एवं-पूर्वी क्तरीत्यैव, तुल्यासंख्येयसमयस्थितिकोऽपि पुद्गलस्तुल्यासंख्येयसमयस्थितिकस्य पुद्गलस्य कालतः-एकसमयस्थितिकत्यादिना तुल्यो भवति, किन्तु तुल्यासंख्येयसमयस्थितिकः पुद्गलः तुल्यासंख्येयसमयस्थितिकव्यतिरिक्तस्य पुद्गलस्य कालत: -एकसमयस्थितिकवादिना नो तुल्यो भवति ! प्रस्तुतार्थमुपसंहरन्नाह-'से तेणटेणं जाव कालतुल्लए कालतुल्लए' हे गौतम ! तत्-अथ, तेनार्थेन यावत् एवमुच्यतेकालतुल्यकंकालतुल्यक पदवाच्योक्तस्वरूपं भवति। अत्र अनन्तक्षेत्रप्रदेशावगाढत्वस्य अनन्तसमयस्थायित्वस्य चानुक्तिस्तु अवगाहप्रदेशानाम् स्थितिसमयानां च पुद्गलापेकी स्थिति से मिन्न पुद्गल के साथ एक समय स्थिति आदि को लेकर समान नहीं होता है। 'एवं तुल्ल असंखेज्जप्तमयटिइए वि' इसी पूर्वोक्त रीति के अनुसार ही तुल्य असंख्यातसमय की स्थितिवाला पुद्गल तुल्य असंख्यात समय की स्थितिवाले पुद्गल के समान होता है। किन्तु जो पुद्गल तुल्य असंख्यात समय की स्थिति से व्यतिरिक्त स्थितिवाला है उसके साथ वह तुल्य असं. ख्यात समय की स्थितिवाला पुगल काल की अपेक्षा-एक समयस्थिति
आदि से-समान नहीं होता है। 'से तेणटेणं जाव काल तुल्लए' इसी कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है, कि कालतुल्यक शब्द काल से तुल्य अर्थ का वाचक होता है । यहां जो अनन्त क्षेत्र प्रदेशों में अव. गाढता का और अनन्तसमय में रहने का कथन सूत्रकार ने नहीं किया है सो उसका कारण ऐसा है कि अवगाह प्रदेशों में और स्थितिसमयों में पुद्गल की अपेक्षा अनन्तता का असद्भाव है ऐसा जानना चाहिये ।
"एवं तुल्ल असंखेज्जसमयदिइए वि” या प्रमाणे तुल्य असण्यात સમયની સ્થિતિવાળું પુદ્ગલ તુલ્ય અસંખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળા પુદ્ગલની સાથે કાળની અપેક્ષાએ સમાન હોય છે, પરંતુ એજ તુલ્ય અસંખ્યાત સમયની સ્થિતિવાળું પુદ્ગલ, તુલ્ય અસંખ્યાત સમયની સ્થિતિ કરતાં જુદી " स्थितिवारना समान ४जनी सपेक्षा तु नथी. “से तेणट्रेणं जाव कालतुल्लए" मे ॥२, ३ गौतम ! मे मे घुछ है - તુલ્યક” શબ્દ “કાળની અપેક્ષાએ તુલ્ય” અર્થને વાચક છે.
અહી અનંતક્ષેત્ર પ્રદેશમાં અવગાઢતું અને અનંત સમયની સ્થિતિનું કથન સૂત્રકારે કર્યું નથી, કારણ કે અવગાહ પ્રદેશોમાં અને સ્થિતિસમયમાં પુદ્ગલની અપેક્ષાએ અનંતતાને અસદુભાવ હોય છે, એમ સમજવું જોઈએ.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧